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नयके भेद इस प्रकार द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक रूप से नयों की चर्चा की अब इनके भेदरूप नैगमादि नयों की चर्चा करते हैं१ जो विचार शब्द, शील, कर्म, कार्य, कारण, आधार और
___ आधेय आदिके आश्रय से होनेवाले उपचार को नैगमादि नयों का स्वरूप
१५ स्वीकार करता है वह नैगम नय है। २ जो विचार नाना तत्त्वों को और अनेक व्यक्तियों को किसी एक सामान्य तत्त्वके आधार पर एकरूप में संकलित कर लेता है वह संग्रह नय है।
३ जो विचार सामान्य तत्त्व के आधार पर एक रूप में संकलित बस्तुओं का प्रयोजन के अनुसार पृथक्करण करता है वह व्यवहार नय है।
४ जो विचार वर्तमान पर्यायमात्र को ग्रहण करता है वह ऋजुसूत्र नय है।
५ जो विचार शब्द प्रयोगों में आनेवाले दोषों को दूर करके तदनुसार अर्थभेद की कल्पना करता है वह शब्द नय है।
६ जो विचार शब्दभेद के अनुसार अर्थभेद की कल्पना करता है वह सपभिरूढ़ नय है।
७ जो विचार शब्द से फलित होने वाले श्रर्थ के घटित होने पर ही उस वस्तु को उस रूप में मानता है वह एवंभूत नय है।
अब इन नयों का विशेष खुलासा करते हैं
शास्त्र में और लोक में अभिप्रायानुसार वचन व्यवहार नाना प्रकार का होता है और उससे इष्ट अर्थ का ज्ञान भी हो जाता है।
. इसमें से बहुत कुछ वचन व्यवहार तो शब्द, शील, नैगम नय
निय कर्म, कार्य, कारण, आधार और आधेय आदि के आश्रय से किया जाता है जो कि अधिकतर उपचार प्रधान होता है। फिर भी उससे श्रोक्ता वक्ता के अभिप्राय को सम्यक् प्रकार जान