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.२.१५.-१६.] इन्द्रियों की संख्या, भेद-प्रभेद, नाम निर्देश, विषय ९३ सम्बन्ध कर लेना चाहिये। जिससे यह अर्थ निकल आषगा कि सभी बस समनस्क होते हैं और सभी स्थावर अमनस्क ?
समाधान-ऐसा सम्बन्ध करना भी युक्त नहीं, क्यों कि सभी त्रस सहनश्क न होकर कुछ ही त्रस समनस्क होते हैं और शेष अमनस्क होते हैं । स्वावरों में तो सशके सब अमनस्क ही होते हैं। इसलिये इन सूत्रों में संसारियों के स्वतंत्र रूप से भेद गिनाये हैं ऐसा समझना चाहिये ॥ ११-१२॥
तेरहवें और चौदहवें सूत्र में क्रमसे स्थावर और त्रस के भेद गिनाये हैं। स्थावर के पाँच भेदों का नाम निर्देश तो सूत्र में ही कर दिया है । इनके एक स्पर्शन इन्द्रिय ही पाई जाती है इस लिये ये एकेन्द्रिय भी कहलाते हैं । त्रात के मुख्य भेद चार हैं द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय । जिनके स्पर्शन और रसना ये दो इन्द्रियाँ हैं वे द्वीन्द्रिय हैं। जिनके इन दो के साथ घ्राण इन्द्रिय है वे जीन्द्रिय हैं। जिनके इन तीन के साथ चक्षु इन्द्रिय है वे चतुरिन्द्रिय हैं और जिनके इन चार के साथ श्रोत्र इन्द्रिय है वे पंचेन्द्रिय हैं।
स्थावर जीव पाँच प्रकार के हैं-पृथिवी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति । यों तो पृथिवी आदि पाँचों सजीव और निर्जीव दोनों प्रकार के होते हैं। पर यहाँ जीवका प्रकरण होने से सजीव पृथिवी आदि का ही ग्रहण किया है। जो जीव विग्रह गति में स्थित हैं किन्तु जिन्हें पृथिवी आदिरूप शरीर की प्राप्ति नहीं हुई है उनका भी यहाँ संग्रह कर लिया गया है, क्यों कि पृथिवी आदि नाम कर्म का उदय उनके भी पाया जाता है। इसी प्रकार स जीवों के सम्बन्ध में भी जानना चाहिये ॥१३-१४॥
इन्द्रियों की संख्या, भेद-प्रभेद, नाम निर्देश और विषयपञ्चेन्द्रियाणि ॥ १५ ॥ द्विविधानि ॥ १६ ॥