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तत्त्वार्थसूत्र
[२.१.-७. अन्या द्रव्यों में भी ये पाये जाते है और यहाँ प्रकरण जीव के छासाघारण भाव दिखलाने का है इसलिये इन्हें अलग से नहीं गिनाया।
इस प्रकार पारिणामिक भाव तीन हैं यह निश्चित होता है।
शंका-आगम में सान्निपातिक भाव भी बतलाये हैं, इमलिये उनका यहां संग्रह क्यों नहीं किया ?
समाधान-सान्निपातिक भाव स्वतंत्र नहीं हैं वे पूर्वोक्त पाँच' भावों के संयोग से निष्पन्न किये जाते हैं, इसलिये उन्हें अलग से नहीं गिनाया।
इस प्रकार मूलभाव पाँच और उनके कुत्त त्रेपन भेद हैं यह सिद्ध होता है ।। ७॥
जीव का लक्षण
उपयोगो लक्षणम् ॥ ८॥ उपयोग यह जीव का लक्षण है।
जो विवक्षित वस्तु को अन्य वस्तुओं से जुदा करे उसे ताक्षण कहते हैं। इसके आत्मभूत और अनात्मभत ऐसे दो भेद हैं। अग्नि की उष्णता यह आत्मभूत लक्षण है और दण्डी पुरुष का लक्षण दण्ड यह अनात्मभूत लक्षण है। प्रकृत में अन्य द्रव्यों से जीव द्रव्य का विश्लेषण करना है। यह देखना है कि वह कौन सी विशेषता है जिससे जीव स्वतंत्र द्रव्य माना जाता है। प्रस्तुत सूत्र में यही बात बतलाई गई है। उपयोग जीव का आत्मभूत लक्षण है। यह जीव को छोड़ कर अन्य द्रव्यों में नहीं पाया जाता। यद्यपि जीव में अरस, अरूप, अगन्ध, सम्यक्त्व आदि और भी अनेक धर्म हैं पर एक तो उनमें से बहुत से धर्म असाधारण नहीं हैं जैसे अरस, अरूप और अगन्ध आदि । ये जीव के सिवा धर्म आदि अन्य द्रव्यों में भी पाये जाते हैं। दूसरे जो सम्यक्त्व आदि आत्मा के असाधारण धर्म हैं वे