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१२० तत्त्वार्थ सूत्र
[५. १८. समाधान-एक कारण से विरोधी दो कार्यों की सिद्धि मानना उचित नहीं है। यतः गति और स्थिति ये परस्पर विरोधी कार्य हैं अतः इनके निमित्त कारण भी जुदे जुड़े माने गये हैं। यही कारण है कि धर्म और अधर्म ये स्वतन्त्र दो द्रव्य माने गये हैं।
शंका-गति और स्थितिरूप क्रिया में कारण होने की अपेक्षा धर्म और अधर्म द्रव्यको अवस्थिति मानना उचित नहीं है क्योंकि इससे उनके स्वरूपास्तित्व की प्रतीति नहीं होती ?
समाधान-यद्यपि धर्म और अधर्म द्रव्य का अस्तित्व प्रत्यक्षज्ञानियों का विषय है किन्तु छद्मस्थ जीव उनका ज्ञान उनके कार्य द्वारा ही कर सकते हैं यही कारण है कि यहां गति और स्थितिरूप उपकार की अपेक्षा उनके अस्तित्वका ज्ञान कराया गया है॥१७॥
आकाश द्रव्य के कार्य पर प्रकाशआकाशस्यावगाहः ॥१८॥ अवकाश में सहायक होना यह आकाश द्रव्य का उपकार है।
संसारके जड़ और चेतन जितने पदार्थ हैं उनमें से बहुत से तो ठहरे हुए हैं और बहुत से गमनशील हैं। उनके ये दोनों कार्य बिना अाधार के नहीं बन सकते हैं। आकाश में उड़नेवाला पक्षी पंखों से अपने नीचे ऐसा वातावरण तैयार करता है जो उसे नीचे गिरने से बचाता है। जहां दस आदमी बैठ सकते हैं वहां बारह इसलिये नहीं समाते कि दससे अधिक के लिये वहां क्षेत्र या आधार नहीं है। इससे ज्ञात होता है कि जग में ऐसा कोई एक पदार्थ है जो सबके लिये अवकाश देता है क्यों कि अवकाश के होने पर ही प्रत्येक पदार्थ की गति या स्थिति हो सकती है। इसी आवश्यकता की पूर्ति के लिये आकाश द्रव्य माना गया है। इसका मुख्य कार्य सबको अवकाश देना है। यदि किसी आकाश-क्षेत्र में कुछ रुकावट होती है तो यह