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२.२५.-३०] अन्तराल गतिसम्बन्धी विशेष जानकारी १११ रहता या वैक्रियिक शरीर नहीं रहता तब भी क्या यह जीव आहार ग्रहण करता है ? इसी प्रश्न का उत्तर इस सूत्र में दिया गया है । सूत्र में बतलाया है कि एक समय, दो समय और तीन समय तक जीव अनाहारक रहता है । यहाँ आहार से मतलब औदारिक, वैक्रियिक और आहारक शरीर के योग्य पुद्गल वर्गणाओं का ग्रहण करना है। संसारी जीव के इस प्रकार आहार ग्रहण करने की क्रिया अन्तराल गति में एक समय, दो समय या तीन समय तक बन्द रहती है। जो जीव ऋजुगति से जन्म लेते हैं वे अनाहारक नहीं होते, क्यों कि ऋजुगतिवाले जीव जिस समय में पूर्व शरीर छोड़ते हैं उस समय उस छोड़े हुए शरीर का आहार लेते हैं
और उससे अनन्तर समय में नवीन शरीर का आहार लेते हैं। इनके भिन्न दो शरीरों के दो आहारों के बीच में अन्तर नहीं पड़ता, इसलिये ये अनाहारक नहीं होते। परन्तु दो समय की एक विग्रहवाली. तीन समय की दो विग्रहवाली और चार समय की तीन विग्रहवाली गतिमें अनाहारक अवस्था पाई जाती है। इन तीनों गतियों में अन्तिम समय आहार का है और शेष एक, दो और तीन समय अनाहार के हैं। दो समय की एक विग्रहवाली गति में दूसरे समय में यह जीव नवीन शरीर को ग्रहण कर लेता है इस लिये वह आहार का है किन्तु प्रथम समय में पूर्व शरीरका त्याग हो जाने से उसके भी आहार का नहीं है
और नवीन शरीर का ग्रहण न होने से उसके आहारका भी नहीं है, इस लिये उस समय अनाहारक रहता है। इसका यह अभिप्राय नहीं कि यह जीव प्रथम समय में किसी भी प्रकार की पुद्गल वर्गणाओं को नहीं ग्रहण करता। कार्मणवर्गणाओं का तो वहाँ भी ग्रहण होता है। पर कार्मण वर्गणाओं का समावेश आहार में नहीं है। यह इसलिये कि केवल इन्हीं वर्गणाओं को ग्रहण करते हुए जीव अधिक काल तक ठहर नहीं सकता। जब कि केवल आहार वर्गणाओं को