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तत्त्वार्थसूत्र
[ १.३३. व्यवहार नय से संग्रह नय का विषय महान है और संग्रह नयसे व्यवहार नय का विषय अल्प है। व्यवहार नय ऊर्वता सामान्य को, भेद द्वारा तिर्यक् सामान्य को और व्यतिरेक विशेष को विपय करता है इसलिये ऋजुसूत्र नय के विषय से व्यवहार नयका विषय महान् है और व्यवहार नय के विषय से ऋजुसूत्र नयका विषय अल्प है । ऋजुसूत्र नय पर्याय विशेष को विषय करता है इसलिए शब्द नय के विषय से ऋजुसूत्र नय का विषय महान है और ऋजुसूत्र नय के विषय से शब्द नय का विषय अल्प है। शब्द नय लिंगादिक के भेद से शब्द द्वारा पर्याय विशेष को विषय करता है, इसलिए शब्द नयके विषय से ऋजुसूत्र नयका विषय महान् है और ऋजुसूत्र नय के विषय से शब्द नय का विषय अल्प है । समभिरूढ़ नय पर्यायवाची शब्दों के भेद से पर्याय विशेष को विषय करता है इसलिये समभिरूढ़ नय के विषय से शब्द नय का विषय महान् है और शब्द नय के विषय से समभिरूढ़ नय का विषय अल्प है। एवम्भूत नव व्युत्पत्ति अर्थ के घटित होनेपर ही विवक्षित शब्द द्वारा उसके वाच्य को विषय करता है इसलिए एवम्भूत नय के विषय से समभिरूढ़ नय का विषय महान है और समभिरूढ़ नय के विषय से एवम्भूत नय का विषय अल्प है।
जैसा कि पहले बतला आये हैं ये सातों ही नय द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक इन दो भागों में बटे हुए हैं। प्रारम्भ के तीन नय द्रव्यार्थिक
हैं और शेष चार नय पर्यायार्थिक । नैगम नय यद्यपि साता नय द्रव्याथिक गौण मख्य भाव से द्रव्य और पर्याय दोनों को ग्रहण और पर्यायार्थिक इन दो भागों में करता है फिर भी वह इनको उपचार से ही विषय बँटे हुए हैं करता है इसलिए यह द्रव्यार्थिक नय का भेद माना
गया है। संग्रह नय तो द्रब्यार्थिक है हो । व्यवहार नयके विषय में ऊर्ध्वता सामान्य की अपेक्षा भेद नहीं किया जाता