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८. १४-२०.] स्थितिबन्ध का वर्णन
३९३ मोहनीय की उत्कृष्ट स्थिति सत्तर कोटाकोटी सागरोपम है। नाम और गोत्रकी उत्कृष्ट स्थिति बीस कोटाकोटी सागरोपम है।
आयु कर्मकी उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागरोपम है। वेदनीयकी जघन्य स्थिति बारह मुहूर्त है। नाम और गोत्रकी जघन्य स्थिति आठ मुहूर्त है। बाकीके पांच कर्मोंकी जघन्य स्थिति अन्तमुहर्त है।
प्रस्तुत सूत्रों में आठों मूल प्रकृतियों का उत्कृष्ट और जघन्य स्थिति बन्ध बतलाया गया है। उत्कृष्ट स्थिति की प्राप्ति मिथ्यादृष्टि संज्ञी पर्याप्त पंचेन्द्रिय जीव के ही सम्भव है अन्य के नहीं; किन्तु इसका एक अपवाद है और वह यह कि आयुकर्म का उत्कृष्ट स्थितिबन्ध सम्यग्दृष्टि के भी होता है। बात यह है कि वैमानिकों के योग्य तेतीस सागरोपम प्रमाण उत्कृष्ट स्थितिबन्ध सकल संयम का धारी सम्यग्दृष्टि ही करता है मिथ्यादृष्टि नहीं। तथा ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, नाम, गोत्र और अन्तराय इनकी जघन्य स्थिति सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थान के अन्तिम समय में प्राप्त होती है, क्यों कि जघन्य स्थितिबन्ध के कारणभूत सूक्ष्म कषाय का सद्भाव वहीं पर पाया जाता है। यद्यपि वेदनीय कर्म का ईर्यापथ आस्रव तेरहवें गुणस्थान तक बतलाया है
और इसलिये इसकी बन्धव्युच्छित्ति तेरहवें गुणस्थान के अन्तिम समय में होती है। परन्तु इसका भी स्थिति और अनुभागबन्ध दसव गुणस्थान तक ही होता है, क्यों कि अगले गुणस्थानों में इन दोनों बन्धों का कारणभूत कषाय का सद्भाव नहीं पाया जाता । अतः वेदनीय की जधन्य स्थिति भी दसवें गुरणस्थान के अन्तिम समय में ही कही है। मोहनीय का जघन्य स्थितिबन्ध नौवें अनिवृत्ति करण गुणस्थान में प्राप्त होता है। और आयुकर्म का जघन्य स्थितिबन्ध कर्मभूमिज तियच और मनुष्यों के सम्भव है। इस उत्कृष्ट और जघन्य स्थितिबन्ध के अतिरिक्त मध्यम स्थितिवन्ध के असंख्यात विकल्प हैं।