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तत्त्वार्थ सूत्र
[ २.३६. - ४९.
गुत्रों से आहारक शरीर के परमाणु असंख्यातगुणे हैं। इसी प्रकार आगे भी आहार शरीर के परमाणुओं से तैजस शरीर के परमाणु और तैजस शरीर के परमाणुओं से कार्मण शरीर के परमाणु अनन्तगुणे है । इस प्रकार यद्यपि उत्तर-उत्तर शरीर के परमाणु अधिक हैं तथापि परिणमन की विचित्रता के कारण वे उत्तरोत्तर सूक्ष्म सूक्ष्म है।
शंका- जब कि प्रत्येक शरीर के परमाणु अनन्त हैं तो फिर वे न्यूनाधिक कैसे हो सकते हैं ?
समाधान - जैसे दो को भी संख्यात कहते हैं, चार को भी संख्यात कहते हैं इस प्रकार संख्यात के संख्यात विकल्प हैं उसी प्रकार अनन्त यह सामान्य संज्ञा होने से उसके अनन्त विकल्प हैं, इसलिये प्रत्येक शरीर के परमाणु अनन्त होते हुए भी उनके न्यूनाधिक होने में कोई आपत्ति नहीं है ॥ ३८, ३९ ॥
• उक्त पांचों शरीरों में से अन्त के दो शरीरों में कुछ विशेषता है, जो अन्तिम दो शरीरों तीन बातों के द्वारा क्रमशः तीन सूत्रों में बतका स्वभाव लाई गई है
प्रतिघात का अर्थ रुकावट है। जिसमें यह रुकावट न पाई जाय वह पदार्थ प्रतीघात होता है । अन्त के दो शरीरों का स्वभाव इसी प्रकार का है इसलिये उन्हें प्रतीघात कहा है। इन दोनों शरीरों का समस्त लोक में कहीं भी प्रतीघात नहीं होता, वज्र जैसी कठिन और सघन वस्तु भी इन्हें नहीं रोक सकती । यद्यपि एक मूर्त पदार्थ का दूसरे मूर्त पदार्थ के साथ प्रतीघात देखा जाता है तथापि यह नियम स्थूल पदार्थों में ही दिखाई देता है सूक्ष्म में नहीं । सूक्ष्म पदार्थ की तो सर्वत्र प्रतीघातगति है ।
शंका- अप्रतीघात गुण वैकियिक और आहारक शरीर में भी पाया जाता है फिर उनका यहाँ उल्लेख क्यों नहीं किया ?