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ध्यान का वर्णन
ध्यान का वर्णनउत्तमसंहननस्यैकाग्रचिन्तानिरोधो ध्यानमान्तर्मुहूर्तात् ॥२७॥
उत्तम संहननवाले का एक विषय में चित्तवृत्ति का रोकना ध्यान है जो अन्तर्मुहूर्त तक होता है। ___ यहाँ ध्यान का अधिकारी, उसका स्वरूप और काल इन तीन बातों का उल्लेख किया गया है। यद्यपि ध्यान सब संसारी जीवों के होता है इसलिये इस दृष्टि से विचार करने पर प्रस्तुत सूत्र की रचना उपयुक्त प्रतीत नहीं होती किन्तु यहाँ पर प्रशस्त ध्यान की प्रधानता से इस सूत्र की रचना हुई है ऐसा समझना चाहिये। संहनन छह हैं उनमें से वज्रर्षभनाराच संहनन, वन नाराचसंहनना र और नाराचसंहनन ये तीन उत्तम संहनन हैं। प्रस्तुत
सूत्र में उत्तम संहननवाले के ध्यान बतलाया है इसका यह अभिप्राय है कि उत्तम संहननवाला ही ध्यान का अधिकारी हैं क्योंकि चित्त को स्थिर करने के लिये आवश्यक शरीर बल अपेक्षित रहता है जो उक्त तीन संहननवालों के सिवा अन्य के नहीं हो सकता। __ शंका-उक्त तीन संहननों के सिवा शेष संहननवाले जीवों के जो ध्यान होता है वह क्या वास्तव में ध्यान नहीं है ?
समाधान-ध्यान तो वह भी है पर यहाँ उपशमश्रेणि या क्षपकश्रेणि पर चढ़ने की पात्रता रखनेवाले जीव के ध्यान की अपेक्षा से वर्णन किया है, क्यों क संवर और निर्जरा के उपायों में ऐसी ही योग्यतावाले प्राणी का ध्यान अपेक्षित है। इसी से प्रस्तुत सूत्र में तीन उत्तम संहननों में से किसी एक संहननवाले जीव को ध्यान का अधिकारी बतलाया है। ___श्वेताम्बर परम्परा में 'आन्तर्मुहुर्तात्' के स्थान में 'आ मुहूर्तात्' स्वतन्त्र
अधिकारी
सूत्र है।