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तत्वार्थसूत्र [३. २७-३४ नदी और हृद आदि दूने दूने हैं। अर्थात् उममें दो मेरु, चौदह वर्ष,
बारह वर्षधर, अट्ठाईस नदी और बारह हद यादि घातकीखण्ड और न ___ पुष्कराध
बार हैं। इन सबके नाम भी वे ही हैं जो जम्बूद्वीप में
- बतलाये हैं। केवल मेरु पर्वतों के नाम भिन्न हैं। धातकीखण्ड द्वीप वलयाकृति है इसके पूर्वाध और पश्चिमा इस प्रकार दो विभाग हैं । यह विभाग इष्वाकार नामवाले दो पर्वत करते हैं जो उत्तर से दक्षिण तक द्वीप के विष्कम्भ प्रमाण लम्वे हैं। इससे घातकीखण्ड द्वीप के दो भाग होकर प्रत्येक विभाग में एक मेरु, सात क्षेत्र, छह वर्षधर, चौदह नदियाँ और छह ह्रद प्राप्त होते हैं। इस प्रकार ये सब जम्बूद्वीप से धातकीखण्ड द्वीप में दूने हो जाते हैं। इस द्वीप में पर्वत पहिये के आरे के समान हैं और क्षेत्र ारों के बीच में स्थित विवर के समान हैं। धातकीखण्ड द्वीप के समान पुष्करार्ध में भी मेरु, वर्ष, वर्षधर, नदी और हृदों की संख्या है क्योंकि इस द्वीप के भी इष्वाकार पर्वतों के निमित्त से पूर्वाध और पश्चिमा ये दो भाग हो गये हैं। इस प्रकार ढाई द्वीप में पाँच मेरु, पैंतीस वर्ष, तीस वर्षधर, सत्तर महानदियाँ और तीस हद प्राप्त होते हैं।।३३-३४॥
जम्बूद्वीप में विदेह क्षेत्र का विस्तार ३३६८४.१. योजन है और मध्य में लम्बाई एक लाख योजन है। ठीक बीच में मेरु पर्वत है। इसके
_ पास से दो गजदन्त पर्वत निकल कर निषध में जा विदेहों का विशेष वर्णन
' मिले हैं। इसी प्रकार उत्तर में दो गजदन्त पर्वत
नोल में जा मिले हैं इससे विदेह क्षेत्र चार भागों में बट जाता है। दक्षिण दिशा में गजदन्तों के मध्य का क्षेत्र देवकुरु
और उत्तर दिशा में यही क्षेत्र उत्तरकुरु कहलाता है। तथा पूर्व दिशा का सब क्षेत्र पूर्व विदेह और पश्चिम दिशा का सब क्षेत्र पश्चिम विदेह कहलाता है। इनमें से देवकुर और उत्तरकुरु में उत्तम भोगभूमि है तथा पूर्व विदेह और पश्चिम विदेह में कर्मभूमि है। इन दोनों अन्तिम