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तत्त्वार्थसूत्र [८. २५-२६. . अधातिरूप अनुभाग शक्ति पुण्य और पाप दो प्रकार की होती है। इनमें से प्रत्येक के चार-चार भेद हैं। गुड़, खाँड, शर्करा और अमृत ये पुण्यरूप अनुभाग शक्ति के चार भेद हैं और नीम, कंजीर, विष और हलाहल ये पापरूप अनुभाग शक्ति के चार भेद हैं। जिसका जैसा नाम है वैसा उसकः फल है। जो कर्म जीव के अनुजीवी गुणों का घात करते हैं उनकी घाति संज्ञा है और जो जीव के प्रतिजीवी गुणों का घात करते हैं उनकी प्रतिजीवी संज्ञा है। जीव के गुण दो भागों में बटे हुए हैं-अनुजीवी गुण और प्रतिजीवी गुण । इन गुणों के कारण ही कर्मों के घाति और अघाति ये भेद किये गये हैं। ज्ञान, दर्शन, सम्यक्त्व, चारित्र, वीय, लाभ, दान, भोग, उपभोग और सुख ये अनुजीवी गुण हैं । ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अन्तराय ये कर्म उक्त गुणों का घात करनेवाले होने से घाति कर्म कहलाते हैं और शेष अघाति कर्म हैं।
इस प्रकार आत्मा की परतन्त्रता का कारण क्या है, कर्म का स्वरूप क्या है, आत्मा से सम्बद्ध सूक्ष्म पुद्गलों को कर्म संज्ञा क्यों दी गई है और कर्म की विविध अवस्थाएँ क्या हैं इनका प्रसंगवश यहाँ संक्षेप में विचार किया ।। २५-२६ ॥
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