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३.९-२३.] जम्बूद्वीप में क्षेत्र आदि का वर्णन १५१ महाहिमवान् , निषध, नील, रुक्मी और शिखरी ये छह वर्षधर पर्वत हैं। __ ये छहों पर्वत क्रम से सोना, चांदी, तपाया हुआ सोना, वैडूर्य मणि, चांदी और सोना इनके समान रंगवाले हैं।
ये मणियों से विचित्र पाववाले तथा ऊपर और मूल में समान विस्तार वाले हैं।
इनके ऊपर क्रम से पद्म, महापा, तिगिब्छ, केशरी, महापुण्डरीक और पुण्डरीक ये छह ह्रद हैं। प्रथम हद एक हजार योजन लम्बा और उससे आधा चौड़ा है। तथा दस योजन गहरा है। इसके बीच में एक योजन का पुष्कर-कमल है। शेष हद और उनके पुष्कर इससे दूने दूने हैं।
उन पुष्करों में निवास करनेवाली श्री, ह्री, धृति, कीर्ति, बुद्धि और लक्ष्मी ये छह देवियां हैं जो एक पल्य की आयुवाली और सामानिक तथा पारिषद देवों के साथ निवास करती हैं। __उन सात क्षेत्रों के मध्य में से गङ्गा-सिन्धु, रोहित-रोहितास्या, हरित्-हरिकान्ता, सीता-सीतोदा, नारी-नरकान्ता, सुवर्णकूला-रूप्यकूला और रक्ता-रक्तोदा ये सरिताएँ बहती हैं।
दो दो नदियों में पूर्व पूर्व नदी पूर्व समुद्र की गई हैं। शेष नदियां पश्चिम समुद्र को गई हैं। गङ्गा-सिन्धु आदि नदियाँ चौदह हजार नदियों से वेष्ठित हैं।
सब द्वीप-समुद्रों के बीच में जम्बूद्वीप है। इसके बीच में और दूसरा द्वीप नहीं है। यद्यपि गोल तो सब द्वीप और समुद्र हैं पर वे
र सब वलय के समान हैं और यह थाली के समान जम्बूद्वीप गोल है। पूर्व से पश्चिम तक या उत्तर से दक्षिण तक इसका विस्तार एक लाख योजन है। इसके ठीक बीच में मेरु पर्वत है