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२.१.-७.] पांच भाव, उनके भेद और उदाहरण ७
४ औदयिक भाव-जिस भाव के होने में कर्म का उदय निमित्त है वह औदायिक भाव है।
५पारिणामिक भाव-जो कर्म के उपशम, क्षय, क्षयोपशम और उदय के बिना द्रव्य के परिणाममात्र से होता है वह पारिणामिक भाव है। आशय यह है कि बाह्यनिमित्त के बिना द्रव्य के स्वाभाविक परिणमन से जो भाव प्रकट होता है वह पारिणामिक भाव है।
संसारी या मुक्त आत्मा की जितनी भी पर्याय होती हैं वे सब इन पांच भावों में अन्तभूत हो जाती हैं इसलिये भाव पांच ही होते हैं
___ अधिक नहीं। इन्हें स्वतत्त्व इसलिये कहा कि ये स्वतत्त्व विचार
पार जीव के सिवा अन्य द्रव्य में नहीं पाये जाते । यद्यपि मल के दब जाने से या निकल जाने से जल की स्वच्छता औपशमिक या क्षायिक है। तथा इसी प्रकार जलादि जड़ द्रव्यों में अन्य भाव भी घटित किये जा सकते हैं, इसलिये इन भावों को जीव के स्वतत्त्व नहीं कहना चाहिये । तथापि प्रकृत में औपशमिक आदि का जो अर्थ विवक्षित है वह जीव द्रव्य को छोड़ कर अन्यत्र नहीं पाया जाता इसलिये इन भावों को जीव के स्वतत्त्व कहने में कोई आपत्ति नहीं। ___यद्यपि भाव पांच होते हैं पर प्रत्येक जीव के पांचों भाव पाये जाने का कोई नियम नहीं है। संसारी जीवों में से किसी के तीन, किसी के किसके कितने
चार और किसी के पांच भाव होते हैं। तीसरे गुणस्थान तन तक के सब संसारी जीवों के क्षायोपशमिक, औदायिक भाव
और पारिणामिक ये तीन ही भाव होते हैं। चार भाव औपशमिक सम्यक्त्व, क्षायिक सम्यक्त्व या क्षायिक चारित्र के प्राप्त होने पर होते हैं और पांच भाव क्षायिक सम्यग्दृष्टि के उपशम श्रेणि पर
आरोहण करने पर होते हैं। संसारी जीवों के केवल एक या दो भाव नहीं होते। किन्तु सब मुक्त जीवों के क्षायिक और पारिणामिक ये दो ही भाव होते हैं। वहाँ कर्म का सम्बन्ध नहीं होने से औदायिक, औप