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२.१७.-२१.] इन्द्रियों की संख्या, भेद-प्रभेद, नाम निर्देश विषय १०१
शंका-यदि ये स्पर्शादिक एक साथ रहते हैं तो किसी किसी वस्तु में थे सब न पाये जाकर एक या दो क्यों पाये जाते हैं। यथा वायु में एक स्पर्श ही पाया जाता है। जिस वायु में गन्ध पाई जाती है वह फूल के संसर्ग से पाई जाती है। तथा सूर्य की प्रभा में रूप और स्पर्श ही पाया जाता है आदि ? ___ समाधान-यद्यपि प्रत्येक पुद्गल में स्पर्शादिक सब धर्म रहते हैं पर जो पर्याय अभिव्यक्त होती है उसी को इन्द्रिय ग्रहण कर सकती है। जिसमें स्पर्शादि सभी धर्म अभिव्यक्त रहते हैं उसमें उन सबका इन्द्रियों द्वारा ग्रहण हो जाता है और जिसमें एक या दो धर्म अभिव्यक्त रहते हैं उसमें उन एक या दो धर्मों का ही इन्द्रियों द्वारा ग्रहण होता है शेष धर्म अभिव्यक्त न होने के कारण उनका ग्रहण नहीं होता ॥२०॥ ___ उक्त पाँचों इन्द्रियों के सिवा एक अनिन्द्रिय भी है जिसे मन कहते हैं। जिस प्रकार पाँचों इन्द्रियों का विषय नियमित है उस प्रकार मनका विषय नियमित नहीं है। वह वर्तमान के समान अतीत और भविष्य के विषय को भी जानता है। अतीत की सब या कुछ घटनाओंका जो स्मरण होता है वह मन द्वारा ही। इसी प्रकार भविष्य की घटनाओं का जो अनुमान करते हैं वह भी मन द्वारा ही। इस लिये मनका विषय विशाल है। तथापि मनका कार्य विचार करना है। इन्द्रियाँ जिन पदार्थों को ग्रहण करती हैं मन उनका भी विचार करता है और जिन पदार्थों को नहीं ग्रहण करती हैं उनका भी विचार करता है। फिर भी जिन पदार्थों को इन्द्रियाँ ग्रहण नहीं करतीं उनमें से वह उन्हीं पदार्थों को ग्रहण करता है जिनको अनुमान से जाना जा सकता है या जिनको श्रुत से जान लिया है। इस प्रकार मन का मुख्य कार्य विचार करना है और यह विचार ही श्रत है। इसी से श्रत अनिन्द्रिय का विपय कहा गया है।
शंका-क्या मन मूर्त के समान अमूर्त पदार्थ को भी जानता है ?
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