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२.११.-१४.] संसारी जीवों के भेद-प्रभेद और दूसरा विभाग त्रसत्व और स्थावरत्व की अपेक्षा से किया
आशय यह है कि जितने भी संसारी जीव हैं वे मनवाले और मनरहित इन दो विभागों में तथा त्रस और स्थावर इन दो भागों में बटे हुए हैं।
शंका-मन क्या वस्तु है ?
समाधान-जिससे विचार किया जा सके वह मन है। यह वीर्यान्तराय और नोइन्द्रियावरण कर्म के क्षयोपशम से होता है। यह एक प्रकार की आत्मा की विशुद्धि है इसलिये इसे भावमन कहते हैं। तथा इससे विचार करने में सहायक होनेवाले सूक्ष्म पुद्गल परमाणु भी मन कहलाते हैं। यह मन आंगोपांग नामकर्म के उदय से होता है। यतः यह द्रव्यरूप है इसलिये इसे द्रव्यमन कहते हैं।
शंका-क्या अमनस्क जीवों के किसी प्रकार का मन होता है ? समाधान-अमनस्क जीवों के किसी प्रकार का भी मन नहीं होता।
शंका-यदि ऐसा है तो अमनस्क जीव इष्ट विषय में प्रवृत्ति और अनिष्ट विषय से निवृत्ति कैसे करते हैं ?
समाधान-क्या इष्ट है और क्या अनिष्ट इसका विचार करना मन का कार्य भले ही रहा आओ पर इष्ट में प्रवृत्ति और अनिष्ट से निवृत्ति यह केवल मन का कार्य नहीं है। यही सबब है कि मन के नहीं रहते हुए भी अमनस्क जीव उस उस इन्द्रिय के सम्बन्ध से इष्ट विषय में प्रवृत्ति और अनिष्ट विषय से निवृत्ति कर लेते हैं। जो विषय जिस . इन्द्रिय को असह्य होता है उससे बचना यह उस उस इन्द्रिय का काम है।
शंका-वस और स्थावर इन भेदों का कारण क्या है ? समाधान-त्रस नामकर्म और स्थावर नामकर्म इन भेदों का