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८.५-१३.] मूलप्रकृति के अवान्तर भेद और उनका नामनिर्देश ३८३ की सामग्री के न रहने पर भी कदाचित् प्राणी को सुखी और दुःखी देखा जाता है। इससे ज्ञात होता है कि सुख और दुःख की सामग्री प्राप्त कराना सातावेदनीय और असातावेदनीय का कार्य नहीं है किन्तु वह सुख और दुःख के होने में निमित्त है। यदि निमित्त को ही कार्य बतलाया जाता है तो यह कथन उपचरित ठहरता है और उपचरित कथन को परमार्थ मान लेना ठीक नहीं है। इस प्रकार यही आपत्ति है जो सुख और दुःख की सामग्री को वेदनीय कर्म का अनुपचरित कार्य नहीं सिद्ध होने देती।
शंका-तो यह बाह्य सामग्री कैसे प्राप्त होती है ? सामाधान-बाह्य सामग्री अपने अपने कारणों से प्राप्त होती है। शंका-वे कारण कौन से हैं ?
समाधान-रोजगार करना, कारखाने खोलना आदि वे कारण हैं जिनसे बाह्य सामग्री प्राप्त होती है।
शंका-सब प्राणी रोजगार आदि क्यों नहीं करते हैं ?
समाधान-यह अपनी अपनी रुचि और परिस्थिति पर अवलम्बित है।
शंका-इन सब बातों के या इनमें से किसी एक के करने पर भी हानि देखी जाति है सो इसका क्या कारण है ?
समाधान-प्रयत्न की कमी या बाह्य परिस्थिति या दोनों।
शंका-कदाचित् व्यवसाय आदि के नहीं करने पर भी धन प्राप्ति देखी जाति है सो इसका क्या कारण है ? ___ समाधान-यहाँ यह देखना है कि वह प्राप्ति कैसे हुई है क्या किसी के देने से हुई या कहीं पड़ा हुआ धन मिलने से हुई है ? यदि किसी के देने से हुई है तो इसमें जिसे मिला है उसके विद्या आदि गुण कारण हैं या देनेवाले की स्वार्थसिद्धि प्रेम आदि कारण है। यदि कहीं पड़ा हुआ धन मिलने से हुई है तो ऐसी धनप्राप्ति पुण्योदय का फल