Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 514
________________ १०. ९.] बारह बातों द्वारा सिद्धों का विशेष वर्णन ४५९ ओर दुःषमसुषमा काल में जन्मे हुए सिद्ध होते हैं। किन्तु दुःपमा में जन्मे हुए दुःपमा में सिद्ध नहीं होते । संहरण की अपेक्षा उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी के सब कालों में सिद्ध होते हैं। वर्तमान दृष्टि से सिद्ध गति में ही सिद्ध होते हैं। तथा भूतकाल को स दृष्टि से यदि अनन्तरगति की अपेक्षा विचार करें तो मनुष्याति से ही सिद्ध होते हैं और यदि एक गति का अन्तर देकर विचार करें तो चारों गतियां से आकर जीव सिद्ध होते हैं। लिंग से वेद और चिन्ह दोनों लिये जाते हैं। पहले अर्थ के अनुसार वर्तमान दृष्टि से अपगतवेदी ही सिद्ध होते हैं। भूतकाल की दृष्टि से भाववेद की अपेक्षा तीनों वेदों से सिद्ध हो सकते हैं किन्तु द्रव्यवेद की अपेक्षा पुलिंग से ही सिद्ध होते हैं। दूसरे अर्थ के अनुसार वर्तमान दृष्टि से निर्ग्रन्थ लिंग से ही सिद्ध होते हैं और अतीतकाल की दृष्टि से तो निर्ग्रन्थ लिंग या सग्रन्थ लिंग दोनों से सिद्ध होते हैं। तीर्थ की अपेक्षा विचार करने पर कोई तीर्थकर पद को प्राप्त कर ५ तीर्थ . और कोई इस पद को नहीं प्राप्त कर सिद्ध होते हैं। - जो इस पद को नहीं प्राप्त कर सिद्ध होते हैं उनमें से कोई तीर्थकरके सद्भाव में सिद्ध होते हैं और कोई उनके असद्भाव में सिद्ध होते हैं। वर्तमान दृष्टि से विचार करने पर सिद्ध किस चारित्र से होते हैं यह नहीं कहा जा सकता, सिद्ध होने के समय में ६ चारित्र पह - पाँच चारित्रों में से कोई चारित्र नहीं होता। भूत दृष्टि से यदि चौदहवें गुणस्थान का अन्तिम समय लें तब तो यथाख्यात चारित्र से सिद्ध होते हैं और उसके पहले के समयों को लें तो तीन, चार तथा पाँच चारित्रों से सिद्ध होते हैं ।

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