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तत्त्वार्थसूत्र [४. १०.-११. अंकित रहता है। इन सबके भवनों के सामने चैत्यवृक्ष और ध्वजाएँ होती हैं। असुरकुमार आदि के भवनों के सामने क्रम से अश्वत्थ, सप्तच्छद, कदम्ब, साल्मली, पलास, राजद्रुम, प्रियंगु, वेतस, जम्बू और शिरीष जाति के चैत्यवृक्ष होते हैं ।। १० ।।
विविध देशान्तरों में निवास करने के कारण दूसरे निकाय के देव व्यन्तर कहलाते हैं । इस जम्बूद्वीप से लेकर असंख्यात द्वीप समुद्रों
को लाँघ कर वहाँ के खर पृथिवी भाग में सात प्रकार व्यन्तरों का विशेष
१ के व्यन्तरों के आवास बने हैं और राक्षसों के वर्णन
आवास पङ्कबहुल भाग में बने हैं। ये आठों प्रकार के व्यन्तर अनेक प्रकार के आभूषण और वस्त्रों से सुसजित रहते हैं। इनके आवासों के सामने चैत्यतरु होते हैं। किन्नरों के अशोक, किम्पुरुषों के चम्पक, महोरगों के नाग, गन्धों के तूमरी, यक्षों के वट, राक्षसों के कण्टतरु, भूतों के तुलसी और पिशाचों के कदम्ब ये चैत्यवृक्ष होते हैं। इन सबके शरीर का रंग भी एक प्रकार का न होकर भिन्न-भिन्न प्रकार का होता है। इन आठों प्रकार के व्यन्तरों के अवान्तर भेद भी अनेक हैं। जिसमें किन्नरों के दस भेद हैं । यथाकिम्पुरुष, किन्नर, हृदयंगम, रूपमाली, किंनर किंनर, अनिन्दित, मनोरम, किन्नरोत्तम, रतिप्रिय और रतिश्रेष्ठ । किम्पुरुष नामक दूसरे भेद के भी दस प्रकार हैं। यथा--पुरुष, पुरुषोत्तम, सत्पुरुष, महापुरुष, पुरुषप्रभ, अतिपुरुष, मरुत, मरुदेव, मरुत्प्रभ और यशस्वत । महोरगों के भी दस भेद हैं। यथा--भुजग, भुजंगशाली, महाकाय, अतिकाय स्कन्धशाली, मनोहर, अशनिजव, महैश्वर्य, गम्भीर और प्रियदर्शन । गन्धर्वो के दश प्रकार ये हैं--हाहा, हूहू, नारद, तुम्बुरुक, कदम्ब, वासव, महास्वर, गीतरति, गीतयश और दैवत । यक्षों के बारह भेद ये हैं-मणिभद्र, पूर्णभद्र, शैलभद्र, मनोभद्र, भद्रक, सुभद्र, सर्वभंद्र, मानुष, धर्मपाल, सुरूपयक्ष, यक्षोत्तम और मनोहर । राक्षसों के सात