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२.५०.-५२.] वेदों के स्वामी
१२७ शेष प्राणी तीनों वेदवाले होते हैं।
वेद के तीन भेद हैं स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुन्सकवेद । जिसके होने पर जीव स्वयं अपने को दोषों से आच्छादित करे और आजू
_____ बाजू की परिस्थिति को भी दोषों से झक दे वह स्त्री वेदों का स्वरूप
४ वेद है। तात्पर्य यह है कि इस वेद के होने पर प्राणी का स्वभाव प्रधानतया ओछा होता है। जिसके होने पर प्राणी का झुकाव अच्छे गुणों और अच्छे, भोगों की ओर रहता है लोक में कार्य भी अच्छे करता है वह पुरुषवेद है। तात्पर्य यह है कि इस वेद के होने पर प्राणी का स्वभाव उठा हुआ होता है। जिसके होने पर प्राणी का स्वभाव स्त्री और पुरुष दोनों के समान न होकर अत्यन्त कलुषित होता है वह नपुन्सक वेद है। आगम में इन तीनों को क्रमशः कण्डे की अग्नि, तृण की अग्नि और अवा की अग्नि का दृष्टान्त दिया है। ये तीनों वेद क्रम से स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसकवेद नोकषाय के उदय से होते हैं। __ अन्यत्र इन तीनों वेदों का 'जो गर्भ धारण करती है वह स्त्री है, जो बच्चे को पैदा करता है वह पुरुष है और जो इन दोनों प्रकार की
शक्तियों से रहित है वह नपुंसक है' इस प्रकार का व्युत्पत्यय व्युत्पत्यर्थ भी मिलता है पर यह द्रव्य वेदकी अपेक्षा से किया गया जानना चाहिये। इन तीनों वेदों का आगमिक अर्थ तो वही है जो ऊपर दिया जा चुका है।
उक्त तीनों वेद भाववेद हैं, क्यों कि वे वेद नोकषाय के उदय से होनेवाले आत्माके परिणाम हैं। इनके अतिरिक्त द्रव्य स्त्रीवेद, द्रव्य
. पुरुषवेद और द्रव्य नपुंसकवेद ये तीन भी होते हैं। वेदों के भेद
दा क मद ये तीनों द्रव्यवेद प्रांगोपांग नामकर्म के उदय से होते हैं। श्वेताम्बर आगम ग्रन्थों में इनका उल्लख चिन्हस्त्री, चिन्हपुरुष और चिन्हनपुंसक रूप से मिलता है। जिस चिन्ह से द्रव्य स्त्री की