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५. २३-२४] पुद्गल का लक्षण और उसकी पर्याय २२६ क्रमशः श्वेत और नील रंगकी किरणें भी उद्भूत हो सकती हैं। श्री मेघनाद शाह और बी० एन० : श्रीवास्तवने अपनी पुस्तक में लिखा है कि कुछ तारे नील श्वेत रश्मियां छोड़ते हैं। इससे उनके तापमान की अधिकता जानी जाती है। तात्पर्य यह कि पांच वर्ण ऐसे प्राकृतिक घर्ण हैं जो किसी भी पुद्गल से विभिन्न तापमानों ( temperatures ) पर उद्भूत हो सकते हैं। और इसलिये ये वर्ण की मूल अवस्थाएं मानी गई हैं।
वैसे जैन शास्त्रोंमें वर्णके उत्तर भेद अनन्त बतलाये हैं। वर्णपटके वर्णों ( spectral colours ) में देखते हैं कि यदि रक्त से लेकर कासनी ( violet ) तक तरंगप्रमाणों ( wave-length) की विभिन्न अवस्थितियों ( stages ) की दृष्टि से विचार किया जाय तो इनके अनन्त होने के कारण वर्ण भी अनन्त प्रकारके सिद्ध होते हैं, क्योंकि एक प्रकाश तरंग ( light wave) दूसरी प्रकाश तरंग से प्रमाण ( length ) में यदि अनन्तवें भाग ( infinitesimal amount) भी न्यूनाधिक होती है तो वे तरंगें दो विसदृश वर्णों को सूचित करती हैं।
इस प्रकार प्रकृत में जो पुद्गलकी परिभाषा दी है वह वर्तमान्त विज्ञान से भी सम्मत है यह सिद्ध होता है ।। २३ ।।
जैसा कि आगे बतलाया जायगा कि पुद्गल द्रव्य अणु और स्कन्ध इन दो भागों में बटा हुआ है। अणु पुद्गलका शुद्धरूप है और दो या दोसे अधिक अणु सम्बद्ध होकर स्कन्ध बनते हैं। स्कन्धरूप से पुद्गलकी जो विविध अवस्थायें होती हैं उनका निर्देश प्रस्तुत सूत्र में किया है। यहां ऐसी दस अवस्थाएं गिनाई हैं। यथा-शब्द, बन्ध, सूक्ष्मत्व, स्थूलत्व, संस्थान, भेद, तम, छाया, आतप और उद्योत ।
पुद्गल के अणु और स्कन्ध भेदोंकी अवान्तर जातियां २३ हैं।