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तत्त्वार्थसूत्र [२.३६.-४९.. समाधान-ये दोनों शरीर प्रवाह की अपेक्षा से अनादि हैं व्यक्ति की अपेक्षा से तो वे भी सादि हैं। उनका भी बन्ध, निर्जरा हुआ करती है। इसलिये उनका नाश मान लेने में कोई आपत्ति नहीं। हाँ जो पदार्थ व्यक्तिरूप से अनादि होता है वह अवश्य अनन्त होता है, उसका कभी भी नाश नही होता जैसे प्रत्येक द्रव्य । __ शंका-नित्य निगोदिया के औदारिक शरीर को अनादि सम्बन्धवाला क्यों नहीं माना जाता ?
समाधान-विग्रह गति में औदारिक शरीर का सम्बन्ध नहीं रहता, इसलिये नित्य नियोदया जीव के औदारिक शरीर को अनादि सम्बन्धवाला नहीं माना जा सकता। ऐसा एक भी संसारी जीव नहीं जिसके तैजस और कार्मण शरीर
न हो इसलिये इन्हें सब संसारी जीवों के बतलाया स्वामी
है। किन्तु तीन शरीर सब संसारी जीवों के न पाये जाकर कुछ ही जीवों के पाये जाते हैं ॥४०-४२।।
यह तो पहले ही बतला आये हैं कि तेजस और कार्मण शरीर सब संसारी जीवों के पाये जाते हैं और शेष शरीर कादाचित्क हैं।
__ इसलिये यह शंका होती है कि एक जीव के एक एक जीवके एक साथ । लभ्य शरीरोंकी संख्या
साथ कम से कम कितने और अधिक से अधिक
" कितने शरीर पाये जाते हैं ? प्रस्तुत सूत्र में यही बतलाया है । एक जीव के एक साथ कम से कम दो और अधिक से अधिक चार शरीर होते हैं पाँच कभी नहीं होते। विग्रहगति में तैजस और कार्मण ये दो शरीर होते हैं, एक कभी नहीं होता, क्योंकि जब तक संसार है तब तक कम से कम उक्त दो शरीरों का सम्बन्ध अवश्य है । शरीर ग्रहण करने पर तैजस, कार्मण और औदारिक या तैजस, कार्मण और वैकिविक ये तीन शरीर होते हैं। पहला प्रकार मनुष्य और तिर्यंचों के होता है तथा दूसरा प्रकार देव और नारकियों