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२.१.-७.] पाँच भाव, उनके भेद और उदाहरण ८३
शंका-अघातिया कर्मों के उदय से भी जाति आदि औदायिक भाव होते हैं उन्हें यहां अलग से क्यों नहीं गिनाया ?
समाधान-अघातिया कर्मों के उदय से होने वाले जितने औदयिक भाव हैं उन सब का 'गति' उपलक्षण है। इसके ग्रहण करने से उन सव का ग्रहण जान लेना चाहिये, इसलियो अघातिया कर्मो के उदय से होने वाले जाति आदि अन्य भावों को अलग से नहीं गिनाया।
शंका-उपशान्तकषाय, क्षीणकषाय और सयोगकेवली गुणस्थान में लेश्या का विधान तो किया है पर वहां कषाय का उदय नहीं पाया जाता, अतः लेश्यामात्र को औदायिक कहना उचित नहीं है ?
समाधान-पूर्वभावप्रज्ञापन नय की अपेक्षा वहाँ औदयिकपने का उपचार किया जाता है, इसलिये लेश्यामात्र को औदयिक मानने में कोई आपत्ति नहीं। ___ इस प्रकार मुख्यरूप से औदायिक भाव इक्कीस ही होते हैं यह सिद्ध हुआ ॥६॥ ___पारिणामिक भाव तीन हैं, जीवत्व, भव्यात्व और अभव्यत्व । इन म जीवत्व का अर्थ चैतन्या है यह शक्ति आत्मा की स्वाभाविक है,
___ इसमें कर्म के उदयादि की अपेक्षा नहीं पड़ती इसलियोः पारिणामिक भाव के भेद
१ पारिणामिक है। यही बात भव्यत्व और अभव्यत्व
के विषय में जानना चाहियो । जिस आत्मा में रत्नत्रय के प्रकट होने की योग्यता है वह भव्य है और जिसमें इस प्रकार की योग्यता नहीं है वह अभव्य है।
शंका-जीव में अस्तित्व, अन्यत्व नित्यत्व और प्रदेशवत्व आदि बहुत से पारिणामिक भाव है जो कर्म के उदयादि की अपेक्षा से नहीं होते, फिर उन्हें यहाँ क्यों नहीं गिनाया ?
समाधान-यद्यपि ये अस्तित्व आदिक पारिणामिक भाव हैं परन्तु ये केवल जीव में ही नहीं पाये जाते । जोव द्रव्य को छोड़ कर