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१५० तत्त्वार्थसूत्र
[३.९-२३. . मणिविचित्रपाङ उपरि मूले च तुल्यविस्ताराः ॥ १३ ॥
पद्ममहापद्मतिगिच्छकेशरिमहापुण्डरीकपुण्डरीका हृदास्तेषामुपरि ।। १४ ॥
प्रथमो योजनसहस्रायामस्तदईविष्कम्भो हृदः॥१५॥ दशयोजनावगाहः॥१६॥ तन्मध्ये योजनं पुष्करम् ॥ १७ ॥ तद्विगुणद्विगुणा हृदा पुष्करोणि च ॥ १८॥
तन्निवासिन्यो देव्यः श्रीहीधृतिकीर्तिबुद्धिलक्ष्म्यः पल्योपमस्थितयः ससामानिकपरिषत्काः ॥ १९ ॥
गङ्गासिन्धुरोहिद्रोहितास्याहरिद्धरिकान्तासीतासीतोदानारीनरकान्तासुवर्णरूप्यकूलारक्तारक्तोदाः सरितस्तन्मध्यगाः॥२०॥
द्वयोद्वयोः पूर्वाः पूर्वगाः ॥ २१ ॥ शेषास्त्वपरगाः॥२२॥ चतुर्दशनदीसहस्त्रपरिवृता गङ्गासिन्ध्वादयो नद्यः ॥ २३ ॥ उन सब द्वीप समुद्रों के बीच में जम्बूद्वीप है जिसके बीच में मेरु पर्वत है, जो गोल है और एक लाख योजन विष्कम्भवाला है।
इस जम्बूद्वीप में भरतवर्ष, हैमवत वर्ष, हरि वर्ष, विदेह वर्ष, रम्यक वर्ष, हैरण्यवत वर्ष और ऐरावत वर्ष ये सात क्षेत्र हैं।
उन क्षेत्रों को जुदा करने वाले और पूर्व-पश्चिम लम्बे ऐसे हिमवान्
* श्वेताम्बर परम्परा ने १२ वें से ३२ वें तक के सूत्रों को सूत्र मानने से अस्वीकार कर दिया है।