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तत्त्वार्थसूत्र
[३. १.-६. (२) लोक के मध्य में एक राजु के अन्तर से नीचे से ऊपर तक खड़ी हुई दो रेखाएं दी हैं वे वपनालो की परिचायक हैं। यह एक राजु लम्बी, एक राजु चौड़ी और चौदह राजु ऊंची है। त्रस जीव इसी में रहते हैं।
(३) अधोलोक में जो सात डबल रेखाएं दी हैं वे सात पृथिवियों की परिचायक है।
(४) मध्यलोक पहली पृथिवी के पृष्ठ भाग पर है।
(५) ऊर्ध्वलोक में १ से लेकर जो १६ तक अङ्क दिये हैं वे सोलह स्वर्गों के सूचक हैं । आगे नौ ग्रैवेयक आदि हैं। ___ इन सब बातों का विशेष वर्णन यथास्थान किया ही गया है इस. लिये इसे छोड़ कर अब क्रमप्राप्त अधोलोक का वर्णन करते हैं।
अधोलोक का विशेष वर्णन कुल भूमियाँ आठ हैं। इनमें से सात अधोलोक में और एक ऊर्ध्वलोक में है । ये सातों भूमियाँ उत्तरोत्तर नीचे नीचे हैं। पर आपस में भिड़कर नहीं हैं किन्तु एक दूसरे के बीच में असंख्य योजनों का अन्तर है। पहली भूमि का नाम रत्नप्रभा है। यह एक लाख अस्सी हजार योजन मोटी है। दूसरी भूमि का नाम शकराप्रभा है। यह बत्तीस हजार योजन
मोटी है। तीसरी भूमि का नाम बालुकाप्रभा है। यह भूमियों के नाम
अट्ठाईस हजार योजन मोटी है। चौथी भूमि का नाम
""" पङ्कप्रभा है। यह चौबीस हजार योजन मोटी है। पाँची भूमि का नाम धूमप्रभा है । यह बीस हजार योजन मोटी है। छठी भूमि का नाम तमःप्रभा है । यह सोलह हजार योजन मोटी है और सातवी भूमि का नाम महातमःप्रभा हैं । यह आठ हजार योजन मोटी है। ये सातों नाम गुणनाम हैं। अर्थात् जिस भूमि का जो नाम है उसके अनुसार उसकी कान्ति है। धम्मा, वंशा, मेघा, अञ्जना, अरिष्टा,