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२,३६.-४९.] पाँच शरीरों का नाम निर्देश और उनका वर्णन १२१ ,
समाधान-यहां सब लोक में अप्रतीघात बतलाना इष्ट है, इसलिये वैक्रियिक और आहारक शरीर का ग्रहण नहीं किया। माना कि वे दोनों शरीर प्रती घात रहित हैं पर उनका यह गुण विवक्षित स्थान में ही सम्भव है। ___ शंका-वैक्रियिक और आहारक शरीर के रहते हुए बादर नाम कर्म का उदय अवश्य होता है, फिर इन्हें अप्रतीघात क्यों कहा?
समाधान-बादर और सूक्ष्म का अर्थ है जो आधार से रहें वे बादर और जो बिना आधार के रहें वे सूक्ष्म । यह दूसरी बात है कि सूक्ष्म प्रतीघात से रहित ही होते हैं किन्तु इससे यह नतीजा नहीं निकलना चाहिये कि जो दूसरों को रोकें या दूसरों से रुके वे बादर । बादर दोनों प्रकार के होते हैं कुछ प्रतीघात से रहित और कुछ सप्रती. घात । वैक्रियिक और आहारक शरीर ऐसे हैं जो, जहाँ तक उनके जाने की क्षमता है वहाँ तक, प्रतीघात से रहित है, इसलिये विवक्षित स्थान में इन्हें भी अप्रतीघात कहा है।
तैजस और कार्मण ये दोनों शरीर आत्मा के साथ अनादि सम्बन्धवाले हैं। इनके सिवा शेष तीन शरीरों की यह बात नहीं
है, क्योंकि आहारक शरीर तो प्रमत्तसंयत मुनिके काल ही सम्भव है सो भी अन्तर्मुहूर्त के बाद वह नष्ट हो जाता है, इसलिये यह तो अनादि हो ही नहीं सकता। अब रहे दो शरीर सो वे भी कादाचित्क हैं। तिर्यंच और मनुष्य पर्याय में
औदारिक शरीर होता है और देव तथा नारक पर्याय में चैक्रियिक इसलिये ये भी अनादि नहीं हो सकते। किन्तु तैजस और कार्मण शरीर एक पर्याय के बाद दूसरी पर्याय में वे ही चले जाते हैं इसलिये इन्हें अनादि कहा है।
शंका-यदि ये दोनों शरीर अनादि संबंधवाले हैं तो इनका नाश नहीं होना चाहिये, क्योंकि अनादिभावका नाश नहीं होता ?