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५. २२.] काल द्रव्य के कार्यों पर प्रकाश २२५
यहां वर्तनाका अर्थ वर्तनहेतुत्व लिया गया है। वर्तना शब्द के दो अर्थ हैं-वर्तन करना और वर्तन कराना। पहला अर्थ छहों द्रव्यों में घटित होता है और दूसरा अर्थ केवल काल द्रव्य में ही घटित होता है। यहां इस दूसरे अर्थकी अपेक्षा ही वर्तना काल द्रव्यका उपकार माना गया है क्यों कि प्रत्येक द्रव्यकी समय समय में जो पर्याय होती है वह बिना निमित्त के नहीं हो सकती, अतः उसी के निमित्तरूपसे वर्तना यह काल द्रव्य का उपकार ठहरता है।
द्रव्यकी अपनी मर्यादा के भीतर प्रति समय जो पर्याय होती है उसे परिणाम कहते हैं। इसके प्रायोगिक और वैनसिक ऐसे दो भेद हैं। जो काल निमित्तक होकर भी पुरुष के प्रयत्न से होता है वह प्रायोगिक परिणाम है और जो पुरुष के प्रयत्न के बिना होता है वह वैस्रसिक परिणाम है । कुम्हार के निमित्त से मिट्टीका घटरूप परिणामका होना या आचार्य के उपदेशादि के निमित्तसे दानादि भावका होना ये प्रायोगिक परिणाम के उदाहरण हैं। और छहों द्रव्यों में जो प्रति समय पर्याय हो रही है वह वैनसिक परिणाम का उदाहरण है।
जो एक देश से दूसरे देश में प्राप्तिका हेतु हलन चलनरूप व्यापार से युक्त द्रव्यकी अवस्था होती है उसे क्रिया कहते हैं । इसके भी प्रायोगिक और वैस्रसिक ऐसे दो भेद हैं। पुरुष के प्रयत्न द्वारा किसी वस्तुका एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाया जाना यह प्रायोगिकी क्रिया है और पुरुष के प्रयत्न के बिना किसी भी क्रियाशील वस्तुका एक स्थान से दूसरे स्थानपर जाना यह वैलिसिकी क्रिया है। उदाहरणार्थ मेज, कुरसी आदिका एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना प्रायोगिकी क्रिया है और मेघ आदि का एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना वैसिसिकी क्रिया है। __परत्व और अपरत्व दो प्रकार से घटित होता है एक क्षेत्र की अपेक्षा और दूसरा कालकी अपेक्षा । यहां कालका प्रकरण है इसलिये