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९. ५.] समिति के भेद
४१५ यह तीनों प्रकार की गुप्ति आस्रव का निरोध करने में सहायक होने से संवर का कारण मानी गई है ॥ ४॥
समिति के भेदईर्याभाषेषणादाननिक्षेपोत्सर्गाः समितयः ॥ ५ ॥ सम्यग ईर्या, सम्यक् भाषा, सम्यक् एषणा, सम्यक् आदान निक्षेप और सम्यक् उत्सर्ग ये पाँच समितियाँ हैं।
यह तो है ही कि जब तक शरीर का संयोग है तब तक किसी न किसी प्रकार की क्रिया अवश्य होगी। मुनि गमनागमन भी करेगा, आचार्य, उपाध्याय, साधु या अन्य जनों से सम्भाषण भी करेगा, भोजन भी लेगा, संयम और ज्ञान के साधनभूत पीछी, कमण्डलु और शास्त्र का व्यवहार भी करेगा और मल मूत्र आदि का त्याग भी करेगा। यह नहीं हो सकता कि मुनि होने के बाद वह एक साथ सब प्रकार की क्रिया का त्याग कर दे। तथापि जो भी क्रिया की जाय वह विवेकपूर्वक ही की जाय इसीलिये पाँच प्रकार की समितियों का निर्देश किया गया है। साधु के इस प्रकार प्रवृत्ति करने से असंयमभाव का परिहार हो कर तन्निमित्तक कमे का आस्रव नहीं होता।
किसी भी प्राणी को मेरे निमित्त से क्लेश न हो एतदर्थ सावधानी पूर्वक गमन करना ईर्या समिति है। अधिकतर गृहस्थ किसी साधु की ऐसी स्तुति करते हुए पाये जाते हैं कि अमुक मुनि इतने जोर से चलते हैं कि साधारण आदमी को उनके पीछे दौड़ना पड़ता है। पर यह गुण नहीं है। ऐसा करने से भले प्रकार संयम की रक्षा होना संभव नहीं है। मुनि को चलते समय बोलना आदि अन्य क्रियायें भी कम करनी चाहिये । नासाग्र दृष्टि रहने से ही चार हाथ प्रमाण भूमि का भले प्रकार से शोधन हो सकता है। गमन करते समय ईर्या समिति का पालन करना मुनि का आवश्यक कर्तव्य है । २-सत्य होते