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२.३६.-४९. ] पाँच शरीरों का नाम निर्देश और उनका वर्णन ११७
आगे आगे का शरीर सूक्ष्म है ।
तैजस से पूर्व के तीन शरीरों में पूर्व पूर्व की अपेक्षा आगे आगेका : शरीर प्रदेशों की अपेक्षा असंख्यातगुणा है ।
तथा परवर्ती दो शरीर प्रदेशों की अपेक्षा उत्तरोत्तर अनन्त
हैं।
तेजस और कार्मण दोनों शरीर प्रतीघात रहित हैं ।
आत्मा के साथ अनादि सम्बन्धवाले हैं ।
तथा सब संसारी जीवों के होते हैं ।
एक साथ एक जीव के तैजस और कार्मण इन दो शरीरों से लेकर चार तक विकल्प से होते हैं ।
अन्त का शरीर उपभोग रहित है ।
प्रथम शरीर गर्भजन्म और सम्मूर्च्छन जन्म से पैदा होता है । वैक्रियिक शरीर उपपाद जन्म से पैदा होता है ।
तथा लब्धि के निमित्त से भी पैदा होता है ।
तैजस शरीर भी लब्धि के निमित्त से पैदा होता है ।
आहारक शरीर शुभ है, विशुद्ध है और व्याघात रहित है तथा वह प्रमत्त संयत मुनि के ही होता है ।
जन्म के पश्चात् शरीरों का कथन किया है, क्योंकि शरीर जन्म के होने पर प्राप्त होते हैं । अथवा नूतन शरीर का सम्बन्ध ही जन्म है यह समझ कर जन्म के पश्चात् शरीरों का कथन किया है ।
यदि पृथक् पृथक् गणना की जाय तो शरीर अनन्त मिलेंगे पर जाति की अपेक्षा और शरीर नामकर्म के मुख्य भेदों की अपेक्षा विचार करने पर उनके पाँच भेद प्राप्त होते हैं । इन पाँच भेदों में सब शरीरों का समावेश' हो जाता है । शरीर के पाँच भेद निम्न प्रकार हैं - श्रदारिक, वैक्रियिक. आहारक, तैजस, और कार्मरण ।
शरीर के भेद और
उनकी व्याख्या