Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

View full book text
Previous | Next

Page 516
________________ *बारह बातों द्वारा सिद्धों का विशेष वर्णन 461 एक समय में कम से कम एक जीव सिद्ध होता है और अधिक से 11 संख्या अधिक एक सौ आठ जीव सिद्ध होते हैं। मध्य के अनेक विकल्प हैं। क्षेत्र और काल आदि जिन ग्यारह बातों को लेकर विचार किया गया है उनमें से प्रत्येक के आधार से न्यूनाधिकता का विचार करना अल्पबहुत्व है। वर्तमान दृष्टि से सिद्ध होनेवालों का 12 अल्पबहुत्व ' सिद्ध क्षेत्र में अल्पबहु त्व नहीं बनता। भूत दृष्टि से क्षेत्र की अपेक्षा विचार करने पर क्षेत्र सिद्ध दो प्रकार के होते है-- जन्मसिद्ध और संहरणसिद्ध / जो जिस क्षेत्र में जन्मते हैं उसी क्षेत्र से उनके सिद्ध होने पर वे जन्मसिद्ध कहलाते हैं और अन्य क्षेत्र में जन्मे हुए जीवों को अपहरण करके अन्य क्षेत्र में ले जाने पर यदि वे उस क्षेत्र से सिद्ध होते हैं तो वे संहरणसिद्ध कहलाते हैं। इनमें से संहरण सिद्ध थोड़े होते हैं और जन्मसिद्ध संख्यातगुणे होते हैं। इसी प्रकार ऊर्ध्वलोक सिद्ध सबसे थोड़े होते हैं, अधोलोक सिद्ध उनसे संख्यातगुणे होते हैं और तिर्यग्लोक सिद्ध उनसे संख्यातगुणे होते हैं। समुद्र सिद्ध सबसे थोड़े होते हैं और द्वीपसिद्ध उनसे संख्यातगुणे होते हैं। इसी तरह काल आदि की अपेक्षा भी अल्पबहुत्व का विचार किया जाता है। हिन्दी विवेचन सहित तत्त्वार्थसूत्र समाप्त

Loading...

Page Navigation
1 ... 514 515 516