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५. ४-७.] मूल धर्मों का साधर्म्य और वैधर्म्य
शंका-धर्मादिक चार द्रव्य अरूपी हैं इसका क्या आशय है ? . ___ समाधान-यद्यपि अरूपी शब्द में रूप पद वर्णवाची है तथापि इससे उसके अविनाभावी रस, गन्ध और स्पर्श इन सबका ग्रहण हो जाता है, इसलिये यह अर्थ हुआ कि धर्मास्तिकाय आदि द्रव्य रूप, रस, गन्ध और स्पर्श आदि धर्मों से रहित हैं ।। ४ ।।
रूप शब्द का अर्थ मूर्ति है। इसलिये पुद्गल रूपी है इसका अर्थ हुआ कि पुद्गल मूर्त है। यहां मूर्ति से रूप, रस, गन्ध और स्पर्श सभी इन्द्रिय ग्राह्य गुणोंका ग्रहण होता है । ये सब गुण पुद्गल्द में पाये जाते हैं इसलिये पुद्गल ही मूर्त है इसे छोड़कर शेष सब द्रव्यय अमूर्त हैं। ___ शंका-मूर्त और आकार ये शब्द कभी कभी एक अर्थ में भी आते हैं इसलिये क्या धर्मादिक द्रव्य अमूर्त के समान आकार रहित भी होते हैं ?
समाधान-वास्तव में आकार शब्द संस्थानवाची और स्वरूप वाची है। कभी कभी इसका अर्थ वणं भी ले लिया जाता है। जब आकार का अर्थ वर्ण लिया जाता है तब तो आकार और मूर्ति शब्द समानार्थक हो जाते हैं। परन्तु इसप्रकार का आकार धर्मादिक द्रव्यों में नहीं पाया जाता इसलिये वे निराकार परिगणित किये जाते हैं। किन्तु जब आकार का अर्थ स्वरूप किया जाता है, तब धर्मादिक द्रव्य भी साकार ठहरते हैं, क्योंकि उनका भी अपना अपना स्वरूप है, इसलिये उन्हें सर्वथा प्राकार रहित नहीं कहा जा सकता है। ___ शंका-यदि ये रूप रसादिक इन्द्रिय ग्राह्य गुण हैं तो परमाणुका भी ग्रहण होना चाहिये, क्यों कि इसमें भी ये गुण पाये जाते हैं ?
समाधान-इन्द्रियां स्थूल पुद्गल को ही ग्रहण करती हैं। यतः परमाणु अतिसूक्ष्म होता है इसलिये उसमें रूप रसादिक के रहते हुए