Book Title: Agam Sagar Kosh Part 03
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम-सागर-कोषः (भागः-३)
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तज्जेज्जा-तर्जयामि। उपा० ४२।
तण-तृणं। विरणादि। उत्त० ३७०| तृणानि-कुशजंजुकाsतज्जेंति-ज्ञास्यसि पापे! इत्यादि भणनतः। ज्ञाता० र्जुनादीनि। प्रज्ञा० ३० तृणं दर्भादि। दशवै० २२९। आचा. २००।
३०| वीरणादि। भग० ३०६) तत्झंतिया-समानकुलगणसंघवर्तिन्यः भगिनी वा। तणइओ- तनूजः। आव० ३४४१ व्यव. २४८1
तणकट्ठ-तृणकाष्ठः। आव०४२३। तटाक-कासारः। नन्दी. १५३
तणगं- तृणविशेषः। सूत्र. ३०९। तट्ट-तट्ट-स्थालम्। प्रज्ञा०७६|
तणपणए-तृणपञ्चकं-शालि १ व्रीहि २ कोद्रव ३ रालको ४ तट्ट- त्वष्टा-द्वादशं मुहूर्त्तनाम। सूर्य. १४६। तष्टं- ५रण्यतृणलक्षम्। आव०६५२ घट्टितम्। सूत्र० १६५त्वष्टा-त्वष्टनामको देवस्तेन तणपणगं-तृणपञ्चकम्। स्था० २३४। त्वाष्ट्री चित्रेत्य-परनाम। जम्बू०४९९।
तणपिडिगा- तृणपिण्डिका-तृणभारः, तृणभारः, तडं-तीरं-निशी. ९८ ।
तृणपूलिका वा। आव०६६७। तडउडा-तडवडा-आउली। जम्बू० ३४१
तणपिंडियं-तृणपिण्डिका। आव०६८२। तडउडाकुसुमं-आउली तस्याः कुसुमं तडवडाकुसुमम्। तणपीढगं-पलालमयं तणपीढगं| निशी० ६२आ। जम्बू० ३४१
तणपूलिअं-तृणपूलम्। आव० १५२ तडतडं- वटवटत्। उत्त० ११३॥
तणफासा- तृणस्पर्शः अशुषिरतणस्य दर्भादेः परिभोगः, तडतडेंत-तटतटायमानाः-तथाविध ध्वनिं विदधानाः। सप्तदशपरीषहः। आव० ६५७। ज्ञाता० १५९।
तणबेंटका-त्रीन्द्रियजन्तुविशेषः। जीवा. ३२१ तडफडता-भृशं आकुलतया गमनागमनं कुर्वाणाः। बृहः । तणबेटिया-त्रीन्द्रियजन्विशेषः। प्रज्ञा० ४२। तडफडा- गमनैः। बृह० ५५ आ।
तणमूल-तृणमूलम्। प्रज्ञा० ३४। तडफडेति-विवदति। निशी० ११२ ।
तणयं-सत्कम्। आव० ३१४। उत्त० १६०| तडवडा-आउली। जीवा. १९१| राज० ३३
तणवणस्सइकाइए- तृणवनस्पतिकायिकाः तडाग-खननसम्पन्नमुत्तानविस्तीर्णजलस्थानम्। बादरवनस्पति-कायिकान्। जम्बू. १६८१ उपा०१०
तणवणस्सइकाइय-तृणवनस्पतिकायिकाःतडागं-तडागं। प्रज्ञा० २६७। सरः। जम्बू. १२३। जीवा. बादरवनस्पतयः। भग० ३०६] १८९| तडागः-कासारः। भग. २३७।
तणवणस्सइगणो-तृणवनस्पतिगणः-बादरवनस्पतीनां तडागमहो-तडाकमहः-तडाकसत्क उत्सवः। जीवा० २८१। सम-दायः। प्रश्न०१२ तडि-तटी-पाश्र्चम्। अनुत्त०६|
तणवणस्सति-तृणवद्वनस्पतयः तृणवनस्पतयः। स्था० तडिओ-आरामिकः। आव० २९५। बद्धः। आव० ४२११ ५२१। बादरावनस्पतयोऽग्रबीजादयः। क्रमेण कोरण्टका तडिग-तटिकः। आव. ३८४
उत्पलकन्दा वंशाः शल्लक्यो वटा एवमादयः। स्था० तडिगा-उपानहौ। ओघ० ३४|
३२५ तृणवनस्पतयो बादरा इत्यर्थः। स्था० १२२ तडिगादिडेवणय-उपानहौ परिधाय डेवनं-लङ्घनमग्नेः । तणवणस्सतिकातिता- वनस्पतिः स एव कायः शरीरं कृत्वा व्रजति। ओघ० ३४।
येषां ते वनस्पतिकायाः त एव वनस्पतिकायिकाः तडितं-पिंजितं रुतं। बृह. ११६ आ।
तणप्रकारा वनस्पनिकायिकास्तुणवनस्पतिकायिका तडियकप्पडिओ- तटिककार्पटिकः। आव० ११५॥
बादरा इत्यर्थः। स्था० १८६) तडी-चिंचणी। बृह० ३० । तटी-नयादीनां तटम्। तणवत्थल- वनस्पतिविशेषः। भग०८०२।
ज्ञाता०६७ आव. २७४। छिण्णटेका। निशी. ३० तणसाला-दब्भादितणट्ठाणं अवोपगासं तणसाला। तड्डेति- लाएति। निशी० १२४ आ।
निशी० २६५।
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [३]

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