Book Title: Agam Sagar Kosh Part 03
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 93
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-३) (Type text] दोणमुह- दोणमुखं प्रायेण जलनिर्गमप्रवेशम्। जीवा०४०। दोस-दवेषः-अप्रीतिलक्षणः। आव० ८४८। दोषः-मालिन्यद्रोणमुखं-बाहल्येन जलनिर्गमप्रवेशम्। प्रज्ञा० ४८१ करणम्। औप०१६। दोषः रोगादिकः। सूर्य. २९७। दोषःजीवा० २७९। जलस्थलनिर्गमप्रवेशम्। आचा० २८५४ मालिन्यकारिणी चेष्टा। जीवा० २७७। द्वेषः-अप्रीतिः। जलपथ-स्थलपथोपेतम्। अनयो० १४२। द्रोण्यो-नावो आव० ५९७। अनभिव्यक्तक्रोधमानस्वरूपमप्रीतिमात्रं मुखमस्येति द्रोणमुखं-जलस्थलनिर्गमप्रवेशम्। उत्त. द्वेषः। भग० ८० दोषः गणेतरः स ६०५। द्रोणमुखं जलस्थलपथयुक्तम्। प्रश्न०६४| जलेण चातितादिदोषसामान्यापेक्षया विशेषः। स्था०४९२। थलेण दोसुवि मुहं दोणमुहं। निशी. २२९ अ। जलपथेन वेषः। औप० ७९। अन्यथास्थिते हि वस्त्न्य न्यथा स्थलपथेन द्वाभ्यामपि प्रकाराभ्यां भाण्डमागच्छति भाषणं दोषः। प्रज्ञा० २५५। दवैषे निश्चितं मत्सरिणां तद्द्वयोः पथोर्मुख-मिति निरुक्त्यत्वात् द्रोणमुखम्। गुणवत्यपि निर्गुणोऽयमित्यादि। स्था० ४८९। द्वेषणं बृह. १८१ । द्रोणमुखः। सूत्र० ३०९। द्वेषः दूषणं वा दोषः, स चानभिव्यक्तक्रोधमानलक्षणजलपथस्थलपथोपेतम्। औप०७४ भग० ३६। ज्ञाता० भेदस्वभावो-Sप्रीतिमात्रम्। स्था० २६। दोषः-रागादिकः १४०१ पूर्वकृतं पापं वा द्वेषो वा। भग० १०० अप्रीतिमात्रम्। दोणमुहमारी- मारीविशेषः। भग० १९७५ ज्ञाता० ७७। दूषयति विशुद्धमप्यात्मनं विकृति नयतीति दोणमुहरूवं- भग० १९३ दोषः कर्म। उत्त० ३७३। आत्मनः परस्य वा दूषणम्। दोणमुहाति- दोणमुखानि येषां भग० ५७२। दोषः-दोषवान्। उत्त० ३०५। दोषः-दूषणः। जलस्थलपथावभावातस्तः। स्था० ८६) ज्ञाता० २०५१ दोणाचार्यः- आचार्यविशेषः। ज्ञाता० २५४। दोसकलिया- द्वेषयुक्ता। जता० १६७। दोणा-द्रोणाः-चतुःसेतिकाप्रमाणः। जम्बू. २४४। द्रोणः- दोसट्टियरुवज्झाया-दोषार्तेत्तरोपाध्यायौ। आव०४६५ आढकचतुष्टयनिष्पन्नः। अनुयो० १५१। दोसनिस्सिआ- द्वेषनिसृता, मृषाभाषाभेदः। आव० २०९। दोणि- द्रोणी नौः। प्रश्न.1 दवेषनिसृता यत्प्रतिनिविष्टस्तीर्थकरादीनामप्यवर्ण दोद्धियं-तम्बं। निशी. २९६ आ। भाषते। प्रज्ञा० २५६। दोद्धियकं- तुम्बघटितं। निशी० १२३ अ। दोसपउस-दोषप्रदोषाः दोषाः इहैव मनस्तापादयः दोब-म्लेच्छविशेषः। प्रज्ञा० ५५ प्रदोषाश्च परत्र नरकगत्यादयः। उत्त. २९० दोभासिअ-वैभाषिकः। आव०६१४| दोसमहलो- द्वेषमलिनः द्वेषाक्रान्तमूर्तिः। आव० ५८५ दोमणंसिया-दौर्मनस्यं-शोकादयस्ति यस्याः सा दोसमासकयं-द्वाभ्यां विसङ्ख्याभ्यां माषाभ्यां दौर्मनस्यिका तद्वा सञ्जातमस्या इति दौर्मनस्यिता। पञ्चरक्तिका-मानाभ्यां क्रियते-निष्पाद्यत इति स्था० ३१३॥ द्विमाषकृतम्। उत्त० २९७ दोमिलिवी- लिपिविशेषः। प्रज्ञा. १६) दोसवत्तिया- दवेषप्रत्ययिकी, विंशतिक्रियामध्ये दोर- सूत्रदवरकम्। आव० ४७४। दवरकः। ओघ० ९२ । एकोनविंशति-तमा। आव०६१ दोला- चतुरिन्द्रियजन्तुविशेषः। प्रज्ञा० ४२ दोसा- पारलौकिका अपायाः। बृह. २०४ आ। दोवई- द्रौपदी-द्रुपदनृपस्य पुत्री। ज्ञाता० २०७। प्रज्ञा० ४०६। | दोसापुरिया- लिपिविशेषः। प्रज्ञा० ५६। दोवारिए-दौवारिकः-प्रतीहारः राजदौवारिको वा। औप. | दोसिए- दूष्यं पण्यमस्येति दौषिकः दूष्यव्यवहारी। अनुयो० १४९। दोवारिय-दौवारिकः, प्रतीहारः। भग० ३१८१ | दोसिणं- पर्युषितम्। ओघ. १०४, २५३। दोवारिया-बारवाला। निशी. २७२ । दारे चेव णिविड्ढा दोसिणा- चन्द्रिका। प्रश्न. १६३ रक्खंति। निशी. २७१ अ। दोसिणाति-ज्योत्सना। स्था० ८६। दोषपदः-अपराधस्थानः। उत्त. २९० | दोसिणापक्खो- ज्योत्सनापक्षः शुक्लपक्षः। सूर्य २३४॥ १४॥ मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [93] "आगम-सागर-कोषः" [३]

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