Book Title: Agam Sagar Kosh Part 03
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 200
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-३) [Type text] परिसमतओ जुण्णा-दुब्बलभावमुवगता। दशवै० १३५| आव० ६१९। परिजन्न- परिजीर्ण-समन्ततोर्बलभावमापन्नम्।। परिट्ठावणिया-परिस्थापनंदशवै० २४८। परिजीर्ण-समन्तात् हानिमुपगतम्। उत्त प्रदानभाजनगतद्रव्यान्तरोज्झन-लक्षणं तेन निवृत्ता ९२१ या परिस्थापनिका, येन भाजनेन भिक्षां ददाति तस्मिन् परिजुन्ना-दशविधप्रव्रज्यायां तृतीया, परियुना-दारिद् पतितौदानादि जात सहसा परिस्थापितम्। आव० ५७६। या-त्काष्टहारकस्येव या सा परिदयना। स्था० ४७४।। परिहाविज्ज-परिस्थापयेद-व्यत्सृजेत्। दशवै० २३१| परिजुसित-निसेवितः परिझुंसियः-परिक्षीणो जरादिना। परिठाणुववाइयं-परिस्थानोपपातिकम्। प्रज्ञा० २०८ स्था० १८८ परिणए-परिणतं-पर्यायान्तरमापन्नम्। भग. २४९। परिजुसिय-पर्युषितं-रात्रिपरिवसनम्। स्था० २२०। परि- परिणत-परिनिष्ठिततां गतम्। अनुयो० १७७। जषितः-सेवितः प्रीतो वा। औप० ४३। सेवितः-पीतः। परिणता-सुत्तेन वयेण य वत्ता-त्यक्ता। निशी. २६ भग. ९२५ आ। धर्मश्रद्धालवः स्थिरचेतसञ्च। ब्रह. १६६ आ। परिजुसियसंपन्न- पर्युषितसम्पन्नः पर्यषितं परिणद्ध-परिणहनम्। ज्ञाता० १३३। परिगतम्। ज्ञाता० रात्रिपरिवसनं तेन संपन्नः। स्था० २२० १६६। परिजरइ-परिजीर्यति-सर्वप्रकारां वयौ हानिमनभवति। | परिणमति-परिणमति अतिक्रामति। स्था० ३४५ उत्त० ३३८५ परिणमति-भवति। भग० ५५ परिणमति-प्रपद्यते। परिजुसियकामभोगसंपओगसंपउत्ते जीवा० ३०७ परिणमति-परिसमाप्तिम्पयाति। सूर्य परिजुषितकामभोगसंप्र-योगसंप्रयुक्तः-सेवितः प्रीतो वा | १७२। विपरिणामं भजते। व्यव० १६० अ। यः कामभोगः-शब्दादिभोगो मदनसेवा। औप०४३। परिणममाणंसि-परिणमति, पूर्यमाणे, परिपूर्णप्राये। परिज्जए- कृष्णपुद्गलः। सूर्य० २८७। जम्बू० १९८१ परिज्झा-कामभोगपिवासा। दशवै. १४ परिणममाण-पूर्यमाणे-परिपूर्णप्रायः। ज्ञाता० ३४| परिज्झिओ-अनगओ। दशवै० १४॥ परिणमिज्जा-परिणमेत्-निवर्तेत। आचा० १२९। परिझुसिय- सेवितः पीतः। भग० ९२५१ परिणमिय-परिणामितःपरिज्ञा-प्रार्थना। आचा० ३७९। पूर्वस्वभावत्याजनेनात्मभावनीतः। भग० ६८३ परिज्ञानं- परिपालनम्। आचा० १६९। परिणय- परिणतः-गीतार्थः। ओघ० ७९। परिणतं-उदकपरिद्वविज्ज-प्रतिष्ठापयेयः-त्यजेयुः। आचा० ३८४।। दायकावस्थाप्राप्तम्। स्था० १४२परिणतः परिदृविज्जमाणं- परित्यज्यमानं देवायतनाच्चतुर्दिक्षु परिनिष्ठिततां गतः। जम्बू० ३८७। परिणतः-परिगतः। क्षिप्य-मानम्। आचा० ३३७५ औप०७। परिणतः-प्रस्तावादात्मरूपनामापन्नम्। उत्त. परिद्वविज्जा-प्रतिष्ठापयेत्-व्यत्सृजेत्। दशवै. १७८१ ६६श परि-निष्ठिततां गतः। भग०६३१। परिणतःपरिद्वविय-परिष्ठापितम्। व्यव० ३०८ अ। अवस्थान्तरमापन्नः। ज्ञाता० १७४। परिणतःपरिद्वविया-परिस्थापिता-पतिता परित्यक्ता। बृह. ६७ स्वकायपरकायशस्त्रादिना परिणा-मान्तरमापादितः, परिहवे-परिष्ठापयति। ओघ० १५४। अचित्तीभूतः। स्था० ५४। परिद्ववेइ-परिष्ठापयेत्-परित्यजेत्। आचा० ३५२। परिणयवए-सम्पन्नावस्थाविशेषः, तरुणः परिणतवयः। परिद्ववेज्जा-परिष्ठापये बहिर्नीत्वा त्यजेत्। उपा० ४२ प्रश्न. ३८ परिद्ववेत्ता- प्रतिस्थाप्य प्रतिनिवृत्य। ओघ. १७३। परिणयवय-परिणयवयः-विगतयौवनः। ज्ञाता० १५७। परिहावणं-परिस्थापनं परिणयापरिणय-दृष्टिवादे सत्रभेदे दवितीयो भेदः। सम० प्रदानभाजनगतद्रव्यान्तरोज्झनलक्षणम्। आव० ५७६| | १२८१ पारितः-सर्वैः प्रकारैः स्थापनं अपन-र्ग्रहणतया न्यासः। | परिणाम-परिणामः-भावः। भग०८९०| समन्तान्नमनं मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [200] "आगम-सागर-कोषः" [३]

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