Book Title: Agam Sagar Kosh Part 03
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
View full book text
________________
[Type text]
आगम-सागर-कोषः (भागः-३)
[Type text]
विशेषः। जीवा० २१३, २१९।
पिण्ड०१४८। प्रकृतः-अधिकृतो महामनुष्यः। व्यव० २४४ पग- प्रभातः। निशी. १०१ अ।
। पगइ- प्रकृतिः-कुम्भकारादिश्रेणिः। औप०७२। प्रकृतिः- । | पगरणं- प्रकरणम्। आव० ८२२। ओघ० ९७। प्रकरणंस्वभावः। जीवा० २७७। प्रकृतिः- कर्मप्रकृतिविषयको अनेकार्थाधिकारवत्कायप्रकरणादि। दशवै० १४१। भगवत्याः प्रथमशतके चतुर्थोद्देशकः। भग०६) पगरिए- प्रगलितः-गलतष्ठः । पिण्ड० १५७ पगइभद्दया- प्रकृतिभद्रकता-स्वभावत एवापरोपतापिता। | पगरिस- प्रकर्षः-विशिष्टार्थावगमरूपः। जीवा० २५४। उपा०२९।
पगलिय- प्रगलितः-सातत्यव्यूढः। नन्दी०४७ प्रगलितःपगओ- प्रगतः-परिचितः। आव०७१०। प्रकृतोऽधिकृतः। क्षरितः। ज्ञाता०२६। निशी० ९८ ॥
पगहः- प्रकर्षेण प्रधानतया चागृह्यते इति प्रग्रहःपगड- प्रकृतं बद्धं वा। आचा० १६१। प्रकृतं निर्वर्तितम्। प्रभूतजन-मान्यः प्रधानपुरुषः। व्यव० ४६ आ। दशवै० २७३। प्रगतः-महागतः। आचा०४१११ प्रकटः- | | पगहिओ- प्रगृद्धः। आव० २९७ प्रख्यातम्। उत्त० ३८४
पगहीय- प्रगृहीतः-गुरुसकाशादङ्गीकृतः। ज्ञाता०२१३। पगणिया- गणनया यत्र दीयते सा प्रगणिता।
पगाढं- प्रगाढं-प्रकर्षवत्। भग० २३१। प्रगाढ-प्रकर्षवत्। प्रकर्षणवक्ष्यमा-णलक्षणजातिनामविशेषनिर्धारणेन प्रश्न० १५६। प्रकर्षवृत्तिः । भग०४८६) पाषंडिना गणना यस्या सा प्रगणिता। बृह. १४० अ० | पगाम- प्रकामं-चातुर्यामं उत्कटं वा। आव० ५७४। प्रकर्षण गण्या प्रगण्या पासंडीणं। निशी. १८६ आ। द्वात्रिंशा-दिकवलाधिकं आहारं प्रकामम्। पिण्ड० १७४। पगत- प्रकृतः-संमत। बृह. २२ आ। प्रकृतः प्रकरणः। बृह. प्रकाम-अत्यर्थम्। उत्त०६२५। ज्ञाता०४४। प्रकाम
१६७ अ। प्रकृतम्। आव० ३०६। प्रकृतम्। आव० ८२२।। द्वात्रिंशत्क-वलकाः प्रकामम्। व्यव० २२ आ। पगता- प्रख्याता। निशी० ३०१ आ। वृष्णिदशायां पगामस- प्रकामशः-बहशः। उत्त०४३३। पञ्चममध्ययनम्। निर० ३९।
पगामाए- प्रकाम-अत्यर्थम्। उत्त० ५३२ पगति- प्रकृतिः-अंशः, भेदः। स्था० २२०। प्रकृतिः- पगार- प्रचारः-प्रवृत्तिः। ज्ञाता०४२। अविशेषितः। स्था० २२०।
पगासंति- प्रकाशयन्ति। सूर्य ६३। परपक्खे उब्भावेंति। पगतीउदीरणा- यन्मूलप्रकृतीनामत्तरप्रकृतीनां वा दलिकं | निशी. १६अ। वीर्यविशेषेणाकृष्योदये दीयते सा प्रकृत्युदीरणा। स्था० | पगास- प्रकाशः-प्रसिद्धिः। सूत्र० १४७। प्रकाशः-प्रतिमता। २२१॥
जीवा० २०५। प्रकाशः-प्रतिमता। जम्बू०४९। प्रकाशःपगप्प- प्रकल्पः-आचारः। आचा० २८१।
प्रतिभा। जीवा. १६४। प्रकाशः-प्रतिभा, आकारो वा। पगप्पएत्ता- प्रकल्पयित्वा-विकर्त्य वा। सूत्र० २९९।। जीवा. २६७। प्रकाशः-व्यक्तभावः। जम्बू०५२८१ पगब्भ- प्रगल्भ-अतीवपरिपुष्टम्। जम्बू. १०४। प्रगल्भः- प्रकाशः-प्रकटः। नेत्रवक्त्रादिविकाशः। अन्यो० १३९। संपूर्णः बृह. ११९ अ। प्रगल्भ-अतीव परिपुष्टम्। जीवा. प्रकाशो-अर्थः। बृह. ३३| प्रकाशः-प्रभा। ज्ञाता० २१। २६७। प्रगल्भं-समर्थम्। भग० ४७०
प्रकाशीभवतीति प्रकाशः-क्रोधः। सूत्र०६९। प्रकाशः। पगब्भइ- प्रगल्भते-धाष्ट्यमवलम्बते। उत्त० ४४। आव० ६२५। प्रकाशः-अर्थः। बृह. २०२ अ। प्रकापगब्भा- प्रगल्भा-पान्तेिवासिनी प्रवाजिका। आव. शोऽर्थस्य प्रकाशकः। व्यव० २१ आ। २०८1
पगासई-प्रभासते-दीप्तये। प्रकाशयति प्रभासते वा। आव. पगयं- प्राकृतं-भोजनम्। ओघ०७२। प्रकृतं-उपयोगः। ४९७
आव० २७७। प्रकरणम्। आव० ५६०। प्रकृतं-गौरवा- पगासण- प्रकाशनं-प्रदीपादिनोद्योतकरणम्। आचा. ५० हस्वजनभोजनादिकम्। पिण्ड० १०३। प्रकृतं-प्रस्तावः। प्रकाशनं-आलोचनम्। व्यव० १२३ अ। आचा०४०७। प्रकृतं-प्रकरणं-प्राघर्णभोजनादिकम्। पगासणया- प्रकाशना-विहारविकटना अपराधविकटना
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
[158]
"आगम-सागर-कोषः" [३]

Page Navigation
1 ... 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272