Book Title: Agam Sagar Kosh Part 03
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
View full book text
________________
[Type text]]
आगम-सागर-कोषः (भागः-३)
[Type text]
३०६।
निगमितमस्मिन्निति। दशवै. ५२
१५४ दुरुवणीए-दुष्टम्पनीतं-निगमितं-योजितमस्मिन्निति | दुवित्तए- द्रोतुं विहर्तुम्। बृह. १५२ आ। दुरुपनीतं परिव्राजकवाक्यवत्। स्था० २५९।
दुविहनियत्ती- श्रावकत्वप्रव्रजतित्वाभ्यां निवृत्तिरिति। दुरुहइ-आरोहति। राज०४१॥
स्था० ३३० दुरुहिउं- आरोढुम्। आव० २६२
दुव्वए-दुर्वतः-व्रतवर्जितः। विपा० ३९| असम्यग्व्रताऽथवा दुय-दुरूपाणि-विरूपाणि। ज्ञाता०५१
दुर्व्ययः आयनिरपेक्षव्ययः कुस्थानव्ययो वा। स्था० दुरूवा-दुःस्वभावाः। भग० ३०८४
ર૪૮) दुरूहिज्जा -आरुहेत्। आचा० ३७९|
दुव्वण्ण-दुर्वर्णः-दुष्टशरीरच्छविः। जम्बू. ११६) दुरोदरं- दयुतम्। उत्त० ४२६|
एकस्मि-न्नपि न पतति इत्यर्थः। निशी. १२५ आ। दुर्ध्यातः- दुष्टचिन्ताविषयीकृतः। ज्ञाता० १९२। दुव्वलचरित्तो-विणा कारणेन मुलुत्तरगुणपडिसेवणं दुर्भिक्षं-दुरितविशेषः। भग०८
करोति। निशी. १०२ आ। दुलुड्डलेमो- भ्राम्यामः। निशी० २९२आ।
दुव्वा-वीया। निशी. २५५आ। दूर्वा-हरितविशेषः। भग० दुल्लंभ-दुर्लभं-अनिवृत्तिकरणम्। भग० २८९। दुर्लभे दुर्भिक्षे। ओघ० १५०।
दुव्विअड्ढा-दुर्विदग्धा-मिथ्याऽहङ्कारविडम्बिता। दुल्लभदव्वं-सतपागसहस्सपागादि वा त्रिकटुकादि वा। नन्दी०६४। निशी. ९६।
दुव्विचिंतिओ-दुर्विचिन्तितः। आव० ७७८१ दुल्ललियगोडी-दुर्ललितगोष्ठी। आव० ३५३।
दुष्टोविचिन्तितो दुर्विचिन्तितः चलचित्ततयाऽशुभ दुल्लहलंभ-दुर्लभलाभः। आव० ३४५
एव। आव० ५७१। दुल्लु लेमि- गवेषयामि। निशी. १७७ अ।
दुव्वियडा- दुर्विवृता-परिधानवर्जिता। बृह० २५८ अ। दुवए-कांपिल्यपुरे राजा। ज्ञाता० २०७।
विवृता-अनावृता सा चोत्तरीयापेक्षयाऽपि स्यादतो दुवक्खरग-दासः। निशी०६५।
दुःशब्देन विशेष्यते विवृता-दुर्विवृतावक्खरियाओ- वेसस्त्रिया। निशी० ११८ आ।
परिधानवर्जिता, विवृतोरुका दुर्विवृता। स्था० ३१३। दुवक्खरिया व्यक्षरिका वेश्या। आव० ४२९। | दुव्विवद्दिया-दुर्विदग्धा। बृह० ५८ अ। दुवग्गोवि- (देशीवचनत्वात्) द्वावपि। बृह. २६०। | दुव्विसुज्झो- दुःखेन विशोध्यो-विशोधयितुं निर्मलतां नेतुं दुवामतराए- दुर्वाम्यतरकं-दुस्त्याज्यतरकलङ्कम्। भग० | शक्यो दुर्विशोध्यः। उत्त० ५०२। २५१
| दुव्वुट्ठी-दुर्वृष्टिः-धान्याद्यनिष्पत्तिहेतुः। भग० १९९। द्वार-द्वारम्। निशी. ९५आ। सीसवारिया। निशी. दुष्प्रणिहितकायिकी-प्रमत्तसंयतस्य क्रिया। १९१ ।
कायिकीक्रियाया द्वितीयो भेदः। आव०६११। दुवारपिंडो-द्वारपिण्डः-द्वारशाखा। जीवा० २०४। | दुष्प्रत्युपेक्षणं-दुष्टं-उद्भ्रान्तचेतसा प्रत्युपेक्षणम्। आव. दुवारबाह-द्वारभागः। आचा० ३३८१
८३६। दुवारवयण-द्वारमेव वदनं-मुखं द्वारवदनम्। भग० दुष्प्रभः-कार्पटिकः। पिण्ड०७१।
दुष्प्रमार्जितचारित्वं-तृतीयमसमाधिस्थानम्। प्रश्न दुवारा- गौपुच्छिकम्। व्यव० १६५ अ।
१४४५ दुवालसंगे- द्वादशाङ्गानि-आचारदीति यस्मिंस्तद दुष्टव्रणादि-नोकर्मद्रव्यदोषो-दृष्टव्रणादिः। आव० ३८९। द्वादशाङ्गम्। सम० १०७।
दुसन्नप्पाणि-दुःसज्ञाप्यानि-दुःखेनार्यसञ्ज्ञां दवासपरियाए-दविवर्षपर्यायः। ज्ञाता० १५५
ज्ञाप्यन्ते। आचा० ३७७।। दुविदु-आगमिन्यामुत्सर्पिण्या अष्टमो वासुदेवः। सम० | दुसमयहिईयं- द्वौ समयौ यस्याः सा द्विसमया
३१३|
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
[84]
"आगम-सागर-कोषः" [३]

Page Navigation
1 ... 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272