Book Title: Agam Sagar Kosh Part 03
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 120
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-३) [Type text] नाहवयं- नाथवचनम्। आव० ३१३। निःश्वसितोच्छ्वसितमानमनतिक्रमतो यद् गेयं तत्। नाहि-नैव। भग. १७५। जानीहि। उत्त०४७३। अनुयो० १३२। स्था० ३९६| नाहियवायं-नास्तिकवादः। गच्छा। निःसम्पन्नम्- असाधारणम्। आचा०४८। नाही- नाभि कुलकर ऋषभपिता। प्रज्ञा० १०९। निःसारं- परिफल्गु, सूत्रस्य द्वात्रिंशद्दोषे सप्तमो दोषः। नि-निर् अपकर्षे अपचये यथा निर्ग्रन्थः। बृह. १३८ आ। आव० ३७५ निती- निर्गच्छन्ती। आव०७०१। निअडिल्ले-निकृतिमान्-मायापरः। उत्त० ३७९। नितो- निर्यान् निष्क्रामन्। पिण्ड० ७६। निअंबो- नितम्बः-पर्वतैकदेशः। ओघ० ३४। निंद- निन्दा गुरुसमक्षमेव हीलना। आव० ५२८१ निअट्टिअव्वं-निवतितव्यम्। ओघ० ७८1 निदइ- निन्दति कुत्सति। आव० ५८७ निअडि-निकृतिः-मायारूपा। दशवै० १८८४ निंदण- निन्दनं-मनसा कत्सा। भग० २२७। निअव्वय- निरन्वयः-एकान्तोच्छदः। नाशः। दशवै०४०। निंदणया- निन्दनं-आत्मनैवात्मदोषपरिकुत्सनम्। भग. निआग-नियागः-नित्यमामन्त्रितः पिण्डः। दशवै. २०३। ७२७ निआण- निदानं भाविफलाशंसा। दशवै. २६७। निंदणा- निन्दना-देवदायकदोषोद्घट्टनम्। प्रश्न. १०९। निइउमाणाइ- नित्यं उमाणं प्रवेशः। आचा० ३२६। निन्दना-स्वमनसि कुत्सा। अन्त०१८ निन्दना मनसा | निइए- नित्यः अप्रच्युतिरूपः। आचा० १७९। कुत्सनम्। औप० १०३। निन्दना-आलोचना विकटना निइगं-मैत्यिक-प्रतिदिनम्। प्रश्न. १४१| शुद्धिः शल्योद्धरणम्। ओघ० २२५ निइल्लिओ- निजकः। आव० १५१। निंदणिज्ज- हीलनीयो गुरुकुलायुद्घटनतः निन्दनीयः। | निउणं- निपुणं-सूक्ष्मम्। आव० २६५। निपुणं-सूक्ष्म ज्ञाता०९६| बह्वर्थं च। आव०६९। नियतगुणं निगुणं वा निंदति- निन्दति चेतसा कुत्सति। भग० १६६। मनसाकु- सन्निहिताशेषसूत्रगुण-मिति यावत। आव०६९। त्सति। ज्ञाता० १४९। निपुणः- सूक्ष्मः । आचा० ३२१ दशवै. १९६| निंदह- निन्दत मनसा निन्दां कुरुत। भग० २१९। उपायारम्भकः। भग० ६३१। निपुणःनिंदा- आत्माध्यक्षमात्मकत्सा प्रतिक्रमणस्य पर्यायः, सूक्ष्मबुद्धिगम्योऽत्यन्तकामविषयपरमनैपुण्योपेत निन्दनं निन्दा। आव० ५५२ इत्यर्थः। सूर्य. २९४| निपुणः- उपायारम्भकः। अनुयो० निंदु-मृतप्रसवनी। अन्त०७) निंब- वृक्षविशेषः। प्रज्ञा० ३१, ३६४भग० ८०३। | निउणसिप्पोगए- निपुणशिल्पोपगतःनिंबए- निम्बकः-आचारविषये अम्बर्षिब्राह्मणश्राद्धपत्रः। सूक्ष्मशिल्पसमन्वितः। अनुयो० १७७। आव०७०८१ निउणा- निपुणाः- दर्शिनः कुशलाः। उपा० ४६। निपुणानिंबछल्ली- निम्बत्वक्। प्रज्ञा० ३६४। आधाकर्मादयपरिभोगतः कृतकारितादिपरिहारेण निंबफाणियं- निम्बफाणितं निम्बक्वाथः। प्रज्ञा० ३६४| सूक्ष्मा । दशवै० १९६। निंबसारे- निम्बसारः निम्बमध्यवर्त्यवयवविशेषः। | निउत्त- नियुक्तं-नियोजितम्। आव० ४९८। व्यापारितः। प्रज्ञा० ३६४। उत्त० ५३६। नितरां युक्तं-सम्बद्धं निकाचितं वेदने वा निःकृपं- चंकमणाई सत्तो सुनिक्किवो थावराइ सत्तेस् । नि-युक्तम्। भग० २८१। नियुक्तं-नितरां सङ्गतं यत् काउं। च नाणतप्पइ एरिसओ निक्किवो होइ। बृह. २१५ | तत्। ज्ञाता० २३८१ आ। निउत्तमणिओइओ-नियक्तानियोजितः। आव २३८। निःशूकः- निद्धन्धसः। ओघ० १५८५ निएल्लओ-निजकः। आव० ३०८। निश्रेयसं- निश्चितं श्रेयः-प्रशस्यम्। स्था० १७७। निओइए-नियोजितः व्यापारितः। उत्त. ३६५) निःश्वसितोच्छवसितसमं निओओ- नियोगः ग्रामः। ब्रह. ३ अ। اوای मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [120]] "आगम-सागर-कोषः" [३]

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