Book Title: Agam Sagar Kosh Part 03
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 119
________________ [Type text]] आगम-सागर-कोषः (भागः-३) [Type text] اوایا3 भग० १२ उभयतो मर्कटबन्धः। सूर्य.४ प्रज्ञा० ३७२ । नालिसंठिय-नाडीसंस्थितः-आवलिकाबाह्यस्य जम्बू. १५) नाराचम्भयतोमर्कटबन्धः। राज०५७) दवाविंशति-तमं संस्थानम्। जीवा. १०४| नारायग्गं- नाराचाग्रं बाणाग्रम्। जीवा० १०६) नाली- नाडी-वसनाडी। भग० ९६०| नाडीकः वनस्पतिविनारायण-नारायणः-अष्टम वासुदेवः। आव०५९, १६६) शेषः। भगवत्याः एकादशशतके पञ्चम उद्देशकः। भग० नारायणः-ऋषिर्यः परिणतोदकादिपरिभोगात्सिद्धः। ५११॥ सूत्र. ९५। कृष्णः । बृह. ३० आ। नालीए- नालिका-यूतविशेषलक्षणा। दशवै० ११७ नारीकंता- नारीकन्ता-नदीविशेषः। स्था०७४। जम्बू० नाव- नोः-द्रोणी। दशवै.२२० नौः-तरिका। पिण्ड० १०२ नावणं- दानम्। प्रश्न ५७ नारीकान्ता- हृदविशषेः। स्था० ७५। नीलवर्षधरपर्वते षष्ठं | नावाबंध- नौबन्धः । बृह. ८२ अ। कूटम्। स्था० ७२ नावापूरकः- चलकः। बृह०७१ आ। नारुआ- नवमी श्रेणिः। जम्बू. १०३ नावासंठिओ- नावासंस्थितः बुध्नादुर्च्वं नाव इव नालंद-सूत्रकृताङ्गे सप्तममध्ययनम्। आव० ६५८१ उभयोरपि पार्श्वयोः समतलं भूभागमपेक्ष्य क्रमेण नालंदा- राजगृहनगरस्य बाहिरिका। सूत्र०४०७। जलवृद्धिसम्भवेन उन्न-ताकारत्वात्। जीवा० ३३५ नालएरी- वृक्षविशेषः। भग० ८०३। नाविओ- स युक्तरूपया नावा भवोदधि तरतीति नालन्दा- नालं ददातीति अर्थिभ्यो यथाऽभिलषितं नाविकः। उत्त० ५०९। ददातीति-राजगृहनगरवाहिरिका। सूत्र० ४०६ नावियदुयक्खरओ-नापितदासः। आव०६९० नालंदीयं-नालं ददातीति, सदाऽर्थिम्यो यथाऽभिलाषितं नासः-न्यासः-द्रव्यस्य निक्षेपः-परैः समर्पित्तं द्रव्यम्। ददातीति नालंदा-राजगृहनगरवाहिरिका तस्यां भवं, उपा०७ न्यासः- रूप्यकादयर्पणम्। आव०८२१| सूत्र-कृताङ्गस्य द्वितीयश्रुतस्कन्धे सप्तममध्ययनम्। | | नासण-नाशनं-कर्मपकृतेः स्तिबुकसङ्क्रमेण सूत्र० ४०६। स्था० ३८७। प्रकृत्यन्तर-गमनम्। आचा० २९८। नालबद्धा- मातापिताभ्राताभगिनीपुत्रोदुहिता इत्येते नासा- नाशा। आव. १९२ घोणः। प्रश्न. ८२ षडप्यन-न्तरवल्लीमधिकृत्य नालबद्धा। बृह. ४२ आ। नासाभेय- नासाभेदः-नासिकाविवरकरणम्। प्रश्न. २२॥ नालिंदा- राजगृहनगरे पाटकविशेषः। भग० ६६१। नासावहारे-नासापहारः- रूप्यकाद्यर्पणस्यापहारः। आव० नालि-नाडी-घटिका। जीवा० १०५ ८२० नालिआ- नालिका-चतुर्हस्तप्रमाणम्। अनुयो० १५४॥ नासावेदणा- नाशावेदना। आव. १९२ नालिका- देहादधिको दण्डकः। ब्रह. २०आ। ताम्रादि- | नासिक- नासिक्यपुरं-नगरविशेषः। नन्दी० १६७। मयघटिका। अनुयो० ४८१ नासीर- मृगया। उत्त० ४३८१ नालिकेरी-वृक्षविशेषः। उत्त०६७२ नासेइ- नाशयति मत्सरादपन्हुते। प्रश्न० १२५ नालिया- नालिका-द्युतक्रीडाविशेषः। सूत्र० १८१। नास्तिकः- लोकायतः। दशवै० १२५ मतविशेषः। उत्त. नालिका-घटिका। दशवै.४० सम. ९८ नालिका २७५ आत्मप्रमाणचतुरङ्गलाधिका यष्टिका। ओघ. ३३॥ नास्तिकाभिप्रायः- लोकायतमतः। दशवै. १२५१ नालिका सुषिरवंशादिरूपा। भग० १३४। यष्टिविशेषः। नाह- नाथत्वं चास्य योगक्षेमकृन्नाथ इति भग० २७५, २७७। स्वमानात् चतुरगुलाधा यष्टिः। बृह. वचनादप्राप्तस्य सम्यग्दर्शनादियोगकरणेन लब्धस्य १६४ आ। नालिका, घटिका। बृह. ४२ अ। तस्यैव पालनेन चेति। सम० ३। योगक्षेमविधाता। उत्त. नालियापुप्फं- नालिकापुष्पं-कलम्बुकापुष्पम्। जम्बू० । ४७३। नाथत्वं योगक्षेम-कारित्वम्, नाथः-प्रभुः। भग० ८५ ४५३ योगक्षेमकृत्। नन्दी०१३। नाथः-योगक्षेमकत्। जीवा. नालियेरपाणगं- पानकभेदः। आचा० ३४७। २५५ मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [119] "आगम-सागर-कोषः" [३]

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