Book Title: Agam Sagar Kosh Part 03
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम-सागर-कोषः (भागः-३)
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गुणैर्ज्ञानादिभि-रिति। ज्ञानादिगुणस्थानम्। उत्त०५८१ पम्हसिट्ठ-नवसागरोपमस्थितिकदेवानां विमानम्। सम० पदं-पादविक्षेपरूपम्, स्थानं च। उत्त० २१७। पदं
निराकाङ्क्षतयाऽर्थगमकत्वेन वाक्यमेव। उत्त० ५७० पम्हावई-पद्मावती रम्यग्विजये नगरी। जम्बू. ३५२। अत्थपच्छियवायगं पयं। निशी० २। पदंस्था० ८०
आवश्यकपदाभिधेयम्। अन्यो० २०| पदंपम्हावती-सीतानदीदक्षिणे वक्षस्कारः। स्था० ३२६, ८० धूलिबहुलभूमिसमुत्थचरणप्रतिबिम्बम्। पिण्ड० २९। पम्हावत्त-नवसागरोपमस्थितिकदेवानां विमानम्। पदं-मुष्टिस्थानम्। भग० १९४। प्तिङन्तं समयप्रसिद्ध सम०१५
वा सङ्ख्येयम्। अनुयो० २३४॥ पम्हुट्ठ- विस्मृतम्। स्था०४०३। विस्मृतम्। प्रश्न० १२४। पयइस्सभाव-प्रकृतिस्वभावः। आव० ३५१| प्रमष्ठः। ओघ० ९७। विस्मृत्या त्यक्तम्। बृह. २४ । पयउ- परः। तन्दु। विस्मृतम्। ज्ञाता० १४८ विस्सरियं। निशी. २१३ अ। | पयए- पदगः-दाक्षिणात्यपदगतव्यन्तराणामिन्द्रः। प्रज्ञा० पडियं, वीसरियं। निशी. २७४ आ। विस्मृतम्। बृह. ९८१ २०९ अ। विस्मृतम्। बृह. २४ अ। विस्मृतम्। व्यव०६३ | पयगवई-पदगपतिः-औदीच्यपदगतव्यन्तराणामिन्द्रः। ।
प्रज्ञा० ९८१ पम्हुइदिसाभाए- विस्मृतदिग्भागः। ज्ञाता० २४०। पयग्ग-पदाग्रं-पदपरिमाणम्। सम० ३६। पम्हुत्तरवडिंसगं- नवसागरोपमस्थितिकदेवानां पयच्छामो-भवते एव दद्मः, सामान्यतः प्रयच्छामः विमानम्। सम० १५
प्रकर्षेणेति-विशेषः। भग०४७६) पम्हसइ-विस्मरति। आव० ३०७
पयट्ट-प्रवृत्तः। आव० ३८५। ओघ० १४२। पम्हसाविया विस्मारिता। उत्त० ८७)
पयट्टओ- प्रकर्षकः-प्रवर्तकः। प्रश्न. ५ पयंग-पतङ्गः-चतुरिन्द्रियजन्तुविशेषः। जीवा० ३२॥ पयट्टाविओ-प्रवर्तितः। आव०४३६| पतङ्गः-व्यन्तरनिकायानाम्परिवर्तिनो
पयट्टिए-प्रवृत्तान् प्रवर्तितान् वा। उत्त. २०६। व्यन्तरजातिविशेषाः। प्रश्न०६९| चतुरिन्द्रियविशेषः। पयट्टियं-प्रवर्तितम्। आव० १७३| प्रज्ञा० ४२। पतङ्गः-वाणमन्तर-विशेषः। प्रज्ञा० ९५ पयट्टिया-प्रवर्तिता। आव० ३९८ पतङ्गः-चतुरिन्द्रियजीवभेदः। उत्त०६९६|
पयडत्था- प्रकटा-जिनवचनतत्त्ववेदिनामुत्तानार्था। पयंगवाहिया-भिक्षाविशेषः। निशी. १२ ।
सूर्य. २९६। पयंगविही-भिक्षाचर्यायां भेदः। उत्त०६०५
पयडिय- प्रपतितं-प्रकर्षण लथीभूतम्। ज्ञाता० १३७ पयंड- प्रकाण्डः-उत्कटः। प्रचण्डो दुःसाध्यसाधकत्वात्। | पयडी- णालिएरि। निशी. १२१ अ। प्रकृतिः-भेदः। आव. सम. १५७। प्रकाण्डः-अत्यर्थम्। सम० १२७। प्रकाण्ड:- २४। प्रकृतिः-स्वभावः। आचा। प्रचण्डः। प्रश्न० ७४। प्रचण्डः-प्रकाण्डो वा दुःसाध्यसाध- पयण-पचनम्। प्रश्न०१४| पचनं-कडिल्लकाकृतिः। कत्वात्। प्रश्न०७४
सूत्र. १२६। पतनं-स्थानम्। उत्त०४४। पाकस्थानं पयंडा-प्रचण्डा-शीघ्रं शरीरव्यापिका, घोरा
चुल्ल्यादि। ज्ञाता० ११० प्रचण्डपरिवर्ति-तत्वात्। प्रश्न. १७१
पयणग-प्रचनकं-प्रचण्डम्। आव०६५१| पयडेमाण-प्रचण्डयन्-आज्ञाप्रधानः सन्नवश्यं
पयणसाला-जहिं पच्चंति भायणाणि। निशी. २१ आ। कर्तव्यतया निरूपयन्। जीवा. १६६।
पचनशाला-वर्षास् भाजनपाकस्थानम्। बृह. १७५अ। पय-पदं-प्रकरणम्। भग० १०७। पदम्। ओघ० ९८ पदम्। | पयण- प्रतन्ः-अतिमन्दीभूतः। जीवा० २७७।
आव० ७९३) पदं-निमित्तकारणम्। आचा० १९७। पदं- | पयणुए- प्रतनुकं-अघनम्। भग० १८९। स्थानम्। आव० ८३९। पदं-पद्यते गम्यते
पयत- प्रयतः-आदियमाणः। जम्बू. १९३। प्रयतः-प्रय
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [३]

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