Book Title: Agam Sagar Kosh Part 03
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 96
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-३) [Type text] धंतधोयरुप्पट्टे-ध्मातः- अग्निसम्पर्कतो निर्मलीकृतः ४३० धौतो भूमिखरण्टिहस्तसम्मार्जनेनातिनिशितीकृतो यो | धणदेव-धनदेवः मण्डिकपुत्र पिता। आव. २५५। राजगृहे रूप्यमयः पट्टः स ध्मातधौतरूप्यपट्टः। प्रणा० ३६१। धन्यसार्थवाहपुत्रः। ज्ञाता०११५ धनदेवः-वर्द्धमानपुरे धट्ठज्जुण- युवराजविशेषः। द्रुपदचुलण्योः पुत्रः। ज्ञाता० सार्थवाहः। विपा० ८८ वणिक्विशेषः। आव० १८९। उत्त. २०७ ३७९ धणंजए- धनञ्जयः-सत्योदाहरणे शौर्यपुरे श्रेष्ठी। आव० धणधन्नपमाणाइक्कमे-धनाधान्यप्रमाणातिक्रमः। ७०५। धनञ्जयः-नवम दिवसनाम। सूर्य. १४७ जम्बू० आव० ८२४, ८२८, २८५ ४९०| धनञ्जयः-उत्तराभाद्रपदगोत्रम्। जम्बू.५०० धणपती- धनपतिः विपादकशानां दवितीयश्रुतस्कन्धे धणंजयसगोत्ते- धनञ्जयसगोत्रम्। सूर्य. १५० षष्ठमम-ध्ययनम्। विपा०८९। धणंतरी- धन्वन्तरिः-अप्रतिपतितविभङ्गः धणपाल-धनपालः इभ्यविशेषः। आव. २८९। राजगृहे सप्तमपृथिवीनरक-गमनविषये व्यक्तिविशेषः। जीवा० धन्यसार्थवाहपुत्रः। ज्ञाता० ११५| धनपालः ४६० कौशाम्बीनगर्या अधिपतिः। विपा० ९५१ धण-दवाविंशतीर्थंकरस्य प्रथमभिक्षादाता। सम.१५१ | धणमित्त-धनमित्रः-योगसंग्रहे निरपलापदृष्टान्ते धनः-राजगृहनगरे सार्थवाहः। आव० ३७०| धनः-चक्षु- दन्तपुरनगरे वणिग्विशेषः। आव०६६६। धनमित्रःरिन्द्रियान्तर्दृष्टान्ते चम्पायां माहेश्वरः संवेगोदाहरणे चम्पायां सार्थवाहः। आव०७०९। सार्थवाहविशेषः। आव० ३९९। धनः-वसन्तपुरे धनमित्रः-व्यक्तपिता। आव० २५५| धनमित्र:सार्थवाहः। आव० ३८४| धनः-पाटलिपुत्रे श्रेष्ठी। आव० । उज्जयिन्यां वणिक्। उत्त० ८७। दंतपुरे सत्थवाहो। ९३॥ धनं-सुवर्णादि। आव० २०८, ६६२। धनं-ग्डशर्करादि, निशी० १२८ । गोमहिष्यजाविकाकरभ-तुरगादि वा। आव० ८२६। धनं- | धणरक्खिए- राजगृहे धन्यसार्थवाहपुत्रः। ज्ञाता० ११५५ गवादि, गणिमादि वा। औप. २७। सेट्ठिविसेसो। निशी० धणवंता- कोटिसङख्यया हिरण्यं ३५१ आ। तंतुहिं समं| निशी० १३८ आ। धनं मणिमुक्ताशिलाप्रवालर-त्नानि च गणिमादिकम्। भग० १३५। धनं-नरके दशमः मणयश्चन्द्रकान्तायाः मुक्तामुक्तफलानि विद्रुमाणि परमाधार्मिकः। आव०६५० रत्नानि कर्केतनादीनि ते ईदृशाः भवन्ति धनवन्तः। धणगिरी- धनगिरिः-इभ्यपुत्रः। आव०| धनगिरिः व्यव० १७१ । तुम्बवन-सन्निवेसे गाथापतिः। उत्त० ३३३, ३२१| धणवइ-धनपतिः-वैश्रमणः। ज्ञाता० १०० धणगुत्त- धनगुप्तः-महागिरिशिष्यः। आव० ३१७। धणवई- धनपतिः-वसन्तपुरे श्रेष्ठिविशेषः। आव० ३९३। धनगुप्तः-महागिर्याचार्याणां शिष्यः। उत्त० १६५ धनपतिः-शतद्वारनगरेऽधिपतिः। विपा० ३९। धणगुत्ता- धनगुप्ताः-प्रायश्चित्तकरणविषये आचार्याः। | धणसंताणगो- अपेहिए लूतापुडगं संबंज्झति। निशी. आव०७२४१ १८२ आ। धणगोत्र- राजगृहे धनसार्थवाहपुत्रः। ज्ञाता० ११५) धणसत्थवाहो- धनसार्थवाहः। आव० ११४| धणदत्त- दन्तपुरे सार्थवाहः। व्यव० १०७ अ। धनदत्तः- | धणसम्मो- धनशर्मा-उज्जयिन्यां धनमित्रवणिक्पत्रः। परग्रामदूतीत्वदोषविवरणे कुटुम्बी। पिण्ड० १२७। उत्त०८७ आधायाः परावर्तितद्वारे तिलकवेष्ठिपुत्रः। पिण्ड. धणसिट्ठो- धनश्रेष्ठि, श्रेष्ठिविशेषः। उत्त० २८६। १००। मूलद्वारविव-रणे चन्द्राननार्यां सार्थवाहः। धणसिरी- धनश्रीः, संवेगोदाहरणे धनमित्रसार्थवाहभार्या। पिण्ड० १४४। सुंसुमायाः पिता। नन्दी० १६६। धनदत्तः आव०७०९। धनश्रीः-वसन्परे धनपतिधनवाहभगिनी। स्वयम्भूवासुदेवपूर्वभवः। आव० १६३। सम० १५३। आव० ३९३। धनदत्तभार्या। व्यव० १०७ अ। योगसंग्रहे धनदत्तः-पारिणामिक्यां बुद्धौ सुसुमायाः पिता। आव० | निरपलाभदृष्टान्ते दन्तपुरनगरे धनमित्रवणिजो मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [96] "आगम-सागर-कोषः" [३]

Loading...

Page Navigation
1 ... 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272