Book Title: Agam Sagar Kosh Part 03
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम-सागर-कोषः (भागः-३)
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आ।
पद्मपत्र- नाट्यविशेषः। जम्बू०४१४| पदमग्गविहि- पदमार्गप्रचारम्। ज्ञाता० २४०।
पद्मराग- मणिभेदः। जीवा. २३। मणिभेदविशेषः। प्रज्ञा. पदरंग- प्रतरकं-भोजनविधिः। आव० ८५९।
રા| पदविभागसामाचारो- कल्पव्यवहारः। ओघ०१|
पद्मराजसामाचार्या तृतीयो भेदः। व्यव० १९ आ।
धातकीखण्डभरतक्षेत्रापरकङ्काराजधानीनिवासि-राजा। पदविभागात्मिकः- सामाचारभेदः। उत्त. १४७।
स्था० ५२४॥ पदसमं- यद्गीतपदं-नामिकादिकं यत्र स्वरे अनुपाति पद्मलता- नाट्यविशेषः। जम्बू०४१४१ भवति तत् तत्रैव यत्र गीते गीयते तत् पदसमम्। पद्मलता- प्रविभक्त्यशोकलता-प्रविभक्तिचम्पकलताअनुयो० १३२
प्रवि-भक्ति-चूतलताप्रविभक्ति-वनलताप्रविभक्ति पदा- पदाः- संयमस्थाः । प्रश्न० ६०|
वासन्तीलता-प्रविभक्तिपदानुसारिबुद्धि- ये गुरुमुखादेकसूत्रपदमनुसृत्य शेषं मुक्तलताप्रविभक्तिश्यामलताप्रविभक्त्यभिनया-त्मको श्रुतमपि भूयस्तरपदनिकुरम्बमवगाहन्ते ते
लताप्रविभक्तिनामा-एकविंशतितमो नाट्यविधिः। पदानुसारिबुद्धयः। बृह. १९३। आ। एकमपि
जीवा० २४७ सूत्रपदमवधार्य शेषमश्रुतमपि तदवस्थ-मेव
पद्मलेश्या- पद्मगर्भवर्णानि यानि द्रव्याणि पीतानीत्यर्थः श्रुतमवगाहते सा पदानुसारिणी। प्रज्ञा०४२४।
तत्साचिव्याज्जाता। स्था० ३२। पदानुसारिता- ऋद्धिविशेषः। स्था० ३३२
पद्यहदः- ह्रदविशेषः। आचा० २२० पदार्थ- मुनिर्गुणो वा। आव०७६०। कारकविषयः, समास- पद्मा- इन्द्रस्य प्रथमाग्रमहिषी। जम्बू. १५९। विषयस्तद्धितविषयो निरुक्तिविषयश्च। आव०४५५।। पद्माकार-खातविशेषः। नन्दी. १६४। पदार्थदोषः- यत्र वस्तुनि पर्यायोऽपि सन् पदार्थान्तरत्वेन पद्मावती- अरिष्टनगराधिपते राममातुलस्य कल्पते। अनुयो० २६२।।
हिरण्यनाभदुहिता। प्रश्न०८८ पदिण्णा- प्रदत्तवती। आव० ५३८।
पध- उष्णजलतेलादि। प्रश्न. ५८ छन्दो बद्धं। जम्बू. पदित्त- प्रदीप्तः। आचा० १५२२
२५९। पदुग्गाणि- प्रदुर्गाणि-कुड्यप्राकारादीनि। आचा०४१११ पधारेइ- प्रधारयति-दुष्टं सङ्कल्पयति। जम्बू० २४८। पदुहु- प्रविष्ठः। ओघ०६३
पधारेति- प्रधारयति-प्रकर्षेण धारयति-करोति। प्रज्ञा पदेस- प्रदेशः-लघतरः। भग०४८३। प्रदवेषः-मस्तरः। ४३६] प्रज्ञा० ४३५। प्रदेशः। सूर्य. १६)
पधाविय- प्रधावितः-वेगितगतिः। प्रश्न. ५० पदेसकम्म- प्रदेशकर्म-प्रदेशा एव-पुद्गला एव यस्य पधाविया- प्रधाविया। आव. २२४। वेदयन्ते न यथा बद्धो रसस्तत्प्रदेशमात्रतया वेदयं कर्म | पधोवणा- अप्पणो पादे पणो पणो उच्छालना। निशी प्रदेशकर्म। स्था०६७
१८८। पद्धतिः-राजिः। प्रश्न० ८३
पनक- जलरुहविशेषः। जीवा० २६। जलरुहविशेषः। प्रज्ञा० पद्म-जलजम्। जीवा० १३६। दशरथसतो रामापरनाम ३१| पनकः-गोमयाश्रितो जीवविशेषः। आचा. ५५
बलदेवः। प्रश्न० ८७। महाह्रदविशेषः। प्रश्न. ९६| पदकादयः- अनन्तजीविकाजीवाः। स्था० १२२॥ पद्मनाभ- द्रव्यजिनः। जम्बू. १३। भावीजिनः। जीवा० ३।। पनगो- साकुरोऽनंकुरो वाऽनन्तकायः पञ्चवर्णः। बृहः । अमरककाधिपतिः। प्रश्न० ८७ श्रुतमधिकृत्य पन्थकसाधु- शैलकाचार्यस्थिरीकारकः। सम० १९८१ कामकथायां राजा। दशवै०१०
पन्न- प्रज्ञस्येदं प्राज्ञं-गीतार्थेनोपात्तम्। सूत्र. ३०१। पद्मनालः- मृणालम्। जीवा० १२३॥
प्रकृष्टं ज्ञानं प्रज्ञा-सूक्ष्मार्थविवेचकत्वम्। स्था० १८३ पद्मपक्ष्म- केशरम्। भग. १२२
| पन्नकतिल-दुर्गंधितिलः। व्यव० १५८ आ।
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [३]

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