Book Title: Agam Sagar Kosh Part 03
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 173
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-३) [Type text] द्रष्टारं प्रति रूपं यस्याः सा। ज्ञाता० ३। प्रतिरूपाः-द्रष्टारं पडिलेहेइ- प्रतिलेखयति-प्रत्यपेक्षते। उत्त०४३४। प्रतिलिप्रति रमणीया इति। स्था० २३२ खति। आव० २१९ पडिलग्गो- प्रतिलग्नः-ग्लानो जातः। आव०६७८५ पडिलेहेति- प्रतिलेखयति प्रस्थापयति। आव०७५६। पडिलग्गो- प्रतिलग्नः। आव० ३९२१ पडिलोम- प्रतिलोमः तद्गन्धादविपरीतगन्धः। आचा० पडिलभे- प्रतिलभेत-प्राप्नुयात्। उत्त०४६) ३६४। प्रतिलोमः-इन्द्रियमनसोरनालादः। स्था० २४४। पडिलाभिता- प्रतिलम्भयिता-लाभवन्तं करोतीत्येवंशीलो प्रति-लोमः-अपवादः। ओघ० ६५ प्रतिलोमयः च भवति। स्था० १०९] पश्चानुपूर्वी। जम्बू० ९७। प्रतिलोम-प्रतिकूलम्। दशवै. पडिलाहेहि- प्रतिलम्भय। आव० ८१५ ५२। प्रतिकूलं- यत्र प्रातिकूल्यमुपदिश्यते यथा शठं प्रति पडिलेहंति- प्रत्युपेक्षन्ते-पौनःपन्येन लगन्ति। आचा० शठत्वं कुर्यात्। स्था० २५३। ११३ पडिवइर- प्रतिवैरम्। आव०६३६। पडिलेह- प्रतिलेखः। आव० ३९९| पडिवक्ख- प्रतिपक्षः-तुल्यपक्षः। ओघ० ९७। प्रतिपक्षःपडिलेहओ- प्रतिलेखकः-प्रतिलिखतीति, प्रवचनानुसारेण असदृशः। ओघ. २३। प्रतिकूलः पक्षः प्रतिपक्षःस्थानादिनिरीक्षकः साधुः। ओघ०१३। अप्रमत्ततया-शुभयोगपूर्वकंप्राणाव्यपरोपणम्। दशवै. पडिलेहणं- प्रत्युपेक्षणा-चक्षुषा निरीक्षणम्। प्रश्न० १५६। २४ प्रतिपक्षः-सदृशपक्षः। बह० २४७ अ। प्रतिपक्षः। पडिलेहणा- प्रत्युपेक्षणा-चक्षुर्व्यापारः। प्रश्न. ११२। आव०१०११ प्रत्युपेक्षणा-आगमविधिना यथावन्निरूपणा ग्रहणप्रति- पडिवज्जइ- प्रतिपद्यते। आव० ३१३| उत्त० १८५१ जागरणरूपा। उत्त० ५८३। प्रतिलेखनं-प्रतिलेखना- पडिवज्जिण- प्रतिपादिनोऽवश्यं प्रतिपद्यमानस्य। उत्त. आगमानुसारेण या निरूपणा क्षेत्रादेः सा। ओघ० १२ ર૮91 पडिलेहणिया- प्रत्युपेक्षणा। ओघ० ११७ पडिवज्जित्तए- प्रतिपत्तुं-अभ्युपगन्तुम्। स्था० ५७ पडिलेहय- प्रतिलेखयतीति प्रतिलेखकः-प्रवचनानुसारेण | पडिवज्जेजा- प्रतिपयत। आव. २२४१ स्थानादिनिरीक्षकः साधुरिति। ओघ० १३। पडिवत्ति- प्रतिपत्तिः-द्रव्यादिपदार्थाभ्युपगमः पडिलेहा- प्रत्युपेक्षणा-गुणदोषपर्यालोचना। आचा० ११४॥ प्रतिमादयभिग्रह विशेषो वा। नन्दी. २१० प्रतिपत्तिःपडिलेहाए- प्रत्युपेक्ष्य-पर्यालोच्य। आचा० २७२। आचा० प्रति-पत्तिः उपमा। व्यव० २२२ अ। प्रतिपत्तिः२१४॥ प्रतिपादनं, परिच्छित्तिः , अवधिप्रकृतिर्वा। आव. २९। पडिलेहिअव्व-प्रेक्षितव्यं-आलोचनीयम्। दशवै. २७२ प्रतिपत्तिं-अभ्यागतकर्तव्यरूपाम्। उत्त. ५०० पडिलेहिऊण- प्रत्युपेक्ष्य-चक्षुषा निरीक्ष्य। ओघ० ११४१ प्रतिपत्तिः -प्रकारः भेदः। ओघ० ११७। पडिलेहित्त- प्रत्युपेक्ष्य-प्रतिजागर्य। उत्त० ५३९। पडिवत्तिकुसला- प्रतिपत्तिकुशलाः पडिलेहित्तए- प्रत्युपेक्षितुं-अवस्थानार्थं निरीक्षितुम्। परप्रतिवचनदानसामर्थाः। व्यव० ५९ अ। स्था० १५७ पडिवत्ती- प्रतिपत्तिः -मतान्तररूपा। सूर्य ८1 पडिलेहित्ता- प्रत्युपेक्ष्य-ज्ञात्वा। दशवै २५०। प्रत्युपेक्ष्य- प्रतिपत्तिः-द्रव्यार्थे पदार्थाभ्युपगमा मतान्तराणि, दृष्ट्वा । आचा०७१। प्रतिपादयनिमादयभि-ग्रहविशेषा वा। सम. १०८ पडिलेहिय- प्रत्युपेक्षणं-गोचरापन्नस्य शय्यादेश्चक्षुषा प्रतिपत्तिः-प्रत्यवताररूपं प्रतिपादनं, सवित्तिः निरी-क्षणम्। आव० ८३६। प्रेक्षितं-पर्यालोचितम्। आचा० अनुयोगद्वारं अर्थो वा। जीवा० ८। प्रतिपत्तिः१८६| यथास्वरुचिवस्तुभ्युपगमः। सूर्य० २४। प्रति-पत्तिःपडिलेहिया- प्रति उप-सामीप्येन ईक्षिता-ज्ञाता प्रतिवचनप्रदानम्। बृह० ४९ अ। प्रतिपत्तिःप्रत्युपेक्षिता। आचा० २३३। उत्तरदानम्। बृह. १४७ आ। प्रतिपत्तिः -परमतरूपा। पडिलेहे- प्रत्युपेक्षेत-निरूपयेत्। ओघ० १७८। सर्य.८ प्रतिवचनम्। निशी. ४२ आ। वन्दनम्। चतु मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [173] "आगम-सागर-कोषः" [३]

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