Book Title: Agam Sagar Kosh Part 03
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 240
________________ [Type text]] आगम-सागर-कोषः (भागः-३) [Type text] पिहंत- अपानद्वारम्। निशी० २५२ आ। ३२४१ पिट्ठ- पिष्टं-अच्छटिततन्दुलचूर्णः। आचा० ३४२। पिष्टः- पिटुंडि- पिष्टं-विसारितम्। ब्रह. ९० आ। पिष्टस्य शालिलोटः। ज्ञाता०९१| पृष्ठं-फलकम्। प्रश्न. ८३| शालिलोटस्य डण्डी-पिण्डी पिषोण्डी। ज्ञाता०९११ पृष्ठं-पाश्चात्यभागः। जम्बू०६७। पिष्टः पिठर- पिठरं-स्थाल्यादि। पिण्ड० १५५ पिठरःआमतण्डुलक्षोदः। दशवै. १७०| पृष्ठः-मार्गः। दशवै. पृष्ठिचम्पायां यशोमतीभत्र्ता। आव. २८६। २३५१ चूर्णम्। निशी. ९ अ। पिष्टं-मुगादि चूर्णम्। बृह. | पिठरक-भाजनम्। आचा० ३४४। पात्रकम्। भग०६९११ २६७ आ। पिष्टं-सूक्ष्मतंदुलादिचूर्णनिष्पन्नम्। बृहः । भाजनम्। आचा० ३२७ १४२ । पिठरी-स्थाली। सूर्य. २९३। पिट्ठओकिच्चा- पृष्ठतःकृत्वा पिडग- पिटकमिव पिटकं-आश्रयः। भग०७११। पिटकं धर्मबन्धनहेतुरियमितिमत्या तिरस्कृत्य। उत्त० ९९। वणिज इव सर्वस्वस्थानम्। स्था० ५०२। पिटकं-सर्वस्वपृष्ठतः-पश्चाद्भागः। ज्ञाता०६२ भाजनं गणिपिटकम्। सम० १०७। पिटकंपिट्ठकरंडग- पृष्ठकरण्डकं, पृष्ठवंशवय॒न्नताः सर्वस्वाऽऽधारः। उत्त. ५१३। पिटकं-सर्वस्वं समूहश्च। अस्थिखण्डाः पंशुलिका। जम्बू. ११७| नन्दी. १९३। पिटकं-स्वस्वमाधारो वा। सूत्र. २५३। पिट्ठकरंडय- पृष्ठकरंडकः-पृष्ठवंशः। जीवा० १५४। पिटकं-चन्द्रविक-सूर्यविकरूपम्। जीवा० ३३६। पृष्ठकरण्डकः। तन्दु पिटकं-द्वौचन्दौ द्वौ सूर्यो च। सूर्य २७५। पिटकंपिट्ठग- पिष्टम्। आव० ६२२ सर्वस्याऽऽधारः। उत्त० ५१३। पिट्ठपयणगं- पिष्टपचनकं-यत् सुरासन्धानाय पिष्टं | पिडगर-पिडगृहं-चिक्खिल्लपिडेर्निष्पादितम्। व्यव० पच्यते तत्। जीवा० १०५४ १०६| पिट्ठपयणगसंठितो- पिष्टपचनकसंस्थितः पिडिगा- पिटिका। दशवै०४४। आवलिकाबाह्यस्य द्वितीयं संस्थानम्। जीवा० १०४।। पिढर- पिढरं-स्थाली। पिण्ड० ८९| पिढरः-यशोमतीभर्ता। पिट्ठपोवलिया- पृष्ठपोलिका। आव० ८५५) उत्त० ३२३ पिट्ठा- पिष्ठा। भग०७६६ पिणद्ध-पिनद्धं-आविद्धम्। जीवा. २०७। पिनद्धं-बद्धम्। पिट्ठि- पेषणम्। निशी. ९ अ। पृष्ठः-स्कंधः। स्था० ११९| | जम्बू. १८९। पिद्विमंसं-पृष्ठिमांसं-परोक्षदोषकीर्तनरूपम्। दशवै. पिण्डं- बाहल्यम्। जम्बू० ५३ २३५ पिण्डहरिद्रा- वनस्पतिकायिकभेदः। जीवा. २७१ पिहिमंसभक्खयं-जं परमहस्स अववोलिजइ तं तस्स। | पिण्डोलकः- कृपणः। दशवै० १८४। दशवै० १२५आ। पिण्ड्यते- प्रचुरीक्रियते। ओघ० १४७ पिहिमंसिय- पृष्ठिमांसाशिकः-पराङ्गमखस्य पिण्णात-घयगुलमिस्सो, सत्तुओ। निशी० ३९ आ। परस्यावर्णवाद-कारी, दशममसमाधिस्थानम्। सम० | पिण्णियं- पिन्निका-ध्यामकाख्यं गन्धद्रव्यम्। उत्त. ३७। पृष्ठमांसादः-यः पराङ्मुखस्यावर्ण भणति, १४२ दशममसमाधिस्थानम्। आव० ६५३। पितदरिसण- नवग्रैवेयके पञ्चमः प्रस्तरः। स्था० ४५३। पिहिमाइया- अनुत्तरोपपातिकदशानां तृतीयवर्गस्य पितधम्म- आलोचना दृष्टान्तः। स्था० ४८४। सप्तमम-ध्ययनम्। अनुत्त०२ पितियंगा-पित्रगानि-प्रायः शक्रपरिणतिरूपाणीत्यर्थः। पिट्ठी- पृष्ठम्। उत्त० १४३ स्था० १७० पिट्ठीचंप- पृष्ठिचम्पानगरी-भगवन्महावीरविहारक्षेत्रम्। | पितुसेणकण्हा- पितृसेणकृष्णा-मुक्तावलीतपकारिका। आव. २०४१ अन्त० ३१॥ पिट्ठीचंपा- पृष्ठिचम्पा-शालराजधानी। उत्त० ३२१, ३२३, | पितृग्रामः- त्रिविधा पुरूषाः। बृह. १८४ आ। मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [240] "आगम-सागर-कोषः" [३]

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