Book Title: Agam Sagar Kosh Part 03
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 131
________________ [Type text]] आगम-सागर-कोषः (भागः-३) [Type text] निमित्तउल्लोगो-निमित्तावलोकः। आव. २१४ निम्मेरा-निर्मर्यादाः प्रतिपन्नापरिपालनादिना। स्था. निमित्तकारणं- कलालादि। स्था०४९४। १२६। अविदयमानकलादिमर्यादः। भग० ३०९। निमित्ताजीवयाते-निमित्ताजीवनतया निम्मोअणी-निर्मोचनी निर्मोकः। उत्त०४०७ कालिकलाभादि नियंटितं- नितरां यन्त्रितं नियन्त्रितम्। भग० २९६। विषयनिमित्तोपात्ताहारादयुपजीवनेनेति। स्था० २७५) नितरां यन्त्रितं-प्रतिज्ञातदिनादौ निमिसंतरं-निमेषान्तरम्। आव० २०८। ग्लानत्वाद्यन्तरायभावेऽपि नियमान् कर्तव्यम्। स्था. निमुग्गं-निमग्नं अनुन्नतम्। प्रश्न० ८० ४९ निम्नं-अङ्गुलिपर्वरेखा। ओघ. १७११ नियंटियं- नितरां यन्त्रितं नियन्त्रितं-प्रतिज्ञातदिनादौ निम्बतिल-निम्बकुसुमम्। व्यव० १५९ अ। ग्लाना-द्यन्तरायभावेऽपि नियमात् कर्तव्यमिति निम्म-निर्मापितम्। व्यव० ४०१ अ। हृदयम्। आव०८४० निम्ममे-जम्बुदवीपभरते आगामिन्यामवसपीण्यां नियंठ-निर्ग्रन्थः श्रमणः। भग० ११२॥ पञ्चदशतीर्थ-कृद्। सम० १५४। नियंठणामिओ-निर्ग्रन्थनामितः। आव० ४१२। निम्मयया-निर्मायता विकाररहितत्वम्। दशवै० १२१॥ नियंठा-निर्गताः स बाह्याभ्यन्तरग्रन्थादिति निर्ग्रन्थाःनिम्मलं-निर्मलं आगन्तुकमलाभावात्। प्रज्ञा० साधवाः। भग० ८९११ ८७निर्मलं-आगन्तुकम-लासम्भवात्। जीवा० १६१। नियंठि-उत्तराध्ययनेषु षष्ठमध्ययनम्। उत्त०९। निर्मलं-छायादि-दोषरहितम्। जम्बू. ५२८१ नियंठिज्जं-निग्रन्थीयं उत्तराध्ययनेष स्वाभाविकमलरहितम्। भग० ६७२। निर्मलानि विंशतितममध्ययनम्। उत्त० ९। कक्खड(कर्कश) मलाभावात्। सम० १४० निर्मलः- नियंठिपुत्ते- पुद्गलप्रदेशनिरूपणे महावीरशिष्यः। भग० विगतमलकल्पसूक्ष्मतरवालाग्रः। भग० २७७। ब्रह्यलोके | २४० चतुर्थो विमानप्रस्तरः। स्था० २६७। निर्मलः नियंठु-निर्ग्रन्थोद्देशः। भग० ३२३। कठिनमलरहितः। औप०१०| निर्मलः-स्वभावो- | नियंठद्देसए- निर्ग्रन्थोद्देशकः। भग० ३२४। द्वितीयशते त्थमलरहितः। जीवा० २७२। पञ्चमोद्देशकः। भग०४२०| निम्मलतरा-निर्मलं जीवं करोति या सा तथा अतिशयेन | नियंत- गच्छन्। आव०६४९। वा निर्मला निर्मलतरा, अहिंसायाः षष्ठितमं नाम। नियंसणं-परिधानम्। जीवा. १७३। प्रश्न९६। नियंसति-परिधापयति। आव० १२३। निम्मल्ल-निर्माल्यं-तीर्थादिगत स प्रभाव प्रतिमा शेषा। । नियंसिकं-परिहितम्। मरण। पिण्ड० ९६| नियंसेहामि-परिधास्ये। आव० ३०७ निम्मवियं-निर्मितं समापितम्। आव०७०६। नियइ-नियत्या नैयत्येन। जम्बू०४४। निम्मवेइ-निर्मिमीते। आव०४१०५ नियइइया-नियतिर्व्यवस्था तत्र नियुक्तास्तथा वा निम्मा-निर्मा मूलपादानां। बृह. १८४ अ। जीवा० १४४ चरन्तीति नैयतिकाः। व्यव. १७१ अ। निम्मिअ-निर्मितः-निवेशितः। जम्बू. २११। नियइपव्वय-नियत्या-नैयत्येन पर्वतो नियतिपर्वतः। निम्मितवादी- निर्मितं-ईश्वरब्रह्मपुरुषादिना कृतं लोकं । | जीवा० २००। जम्बू०४४।। वद-तीति निर्मितवादी। स्था०४२५ नियइया-नैयतिकी नियता। प्रज्ञा० ३३५। निम्मिय-निर्मितं निवेशितम्। उपा०४४। निर्मितः नियई-यत राद्धावपि नियतरसत्वं न शाल्यादिरसता सा निवेशितः। भग० ४५९। नियतिः। प्रश्न० ३५ निम्मग्गा-निर्मग्ना नदीः। आव० १५० नियए-नित्यः अप्रच्युतानुत्पन्नस्थिरैकस्वभावः। त्त० निम्मेरं-निर्मर्यादम्। गच्छा ४३० मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [131] "आगम-सागर-कोषः" [३]

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