Book Title: Agam Sagar Kosh Part 03
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम-सागर-कोषः (भागः-३)
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नदितानि- शब्दवन्ति। जीवा० १६०
ज्ञाता० १०| कायेन प्रणमति नात्यासन्ने नातिदूरे नदी- गङ्गासिन्ध्वादिका। नन्दी० २२८नदी-सरित्।। उचिते देशे इत्यर्थः। ज्ञाता०१० नमस्यति तत्प्रवैः भग० २३७। ज्ञाता० ३६। बादरअप्कायस्थानेषु स्थानम्। शब्दैः स्तौति। सूत्र. २७४। नमस्करोति प्रज्ञा०७२।
पश्चात्प्रणिधानादियोगेन सामान्येन वा। जीवा० २५६। नदीकच्छ- नदीगहनम्। ज्ञाता०६७।
नमंसण- नमस्करणं वाचा। आव०४०६। नमस्यनं नन्दः- क्रोधहृतः। भक्त।
प्रणमनम्। भग० ११५ नन्दक- खङ्गविशेषः। सम० १५७।
नमंसणिज्ज- नमस्यनं प्रणामतः। औप.५ नन्दन- छत्राग्रनगर्या राजसन्ः। सम० १०६)
नमंसति- नमस्यति कायेन प्रणमति। निर० ३। कायेन नन्दनवनं- मेरुपर्वते वनम्। आव०४७। ज्ञाता०९१। कूट- वन्दित्वा नमस्यित्वा च। राज०४८। विशेषः। प्रश्न. ९६|
नमंसित्ता- नमस्यित्वा प्रणस्य। स्था० १०८। नन्दा- श्रेणिकस्य राजी बेन्नात्तटनगरेश्रेष्ठिनः पुत्री नमंसे- नमस्यति नमस्करोति। दशवै. २४५ अभयकु-मारस्य माता। नन्दी. १५०
नमः- पूजार्थमव्ययम्। आव० ३७९। नन्दाप्रविभक्ति-त्रयोदशनाट्यभेदः। जम्बू. ४१७ नममाणे- नममानः संयमानुष्ठानेन विनयवान्। आचा. नन्दाप्रविभक्तिचम्पाप्रविभक्त्यभिनयात्मको
२५४१ नन्दाचम्पाप्र-विभक्त्यात्मकः त्रयोदशो नाट्यविधिः। | नमयति-प्रवणयति। उत्त०६४११ जीवा० २४६।
नमस्करण- प्रणामपूर्वकं प्रशस्तध्वनिभिर्गुणोत्कीर्तनम्। नन्दि-संनिवेशविशेषः। उत्त० ३८०
आव०८८८1 नन्दिघोषा- घण्टाविशेषः। भग० ७००
नमस्कारः- पञ्चमङ्गलकः। ओघ० २०३ नन्दिणीपिया- उपासकदशानां नवममध्ययनम्। उपा० नमिः- कच्छपुत्रः। आव० १४३।
नमिपव्वज्जा- उत्तराध्ययनानां नवममध्ययनम्। सम० नन्दितः- महितो हृष्टः तुष्टो वा। आव० ७५९।
६४| नन्दिवर्धनः- भगवतः वर्द्धमानस्वामिनो भ्राता। आव० नमिय- नमितः नामं ग्राहितः। जीवा० २२९, २९४१ १८३
नमिया- ज्ञातायाः दवितीयश्रतस्कंधे पञ्चमवर्गे नन्दिवर्द्धनः- राजकुमारविशेषः। स्था०५०८।
द्वाविंशतितमम-ध्यनम्। ज्ञाता० २५२। नन्दिषेणः- श्रेणिकपुत्रः। नन्दी० १६६।
नमी- नमिः द्रव्यव्यत्सर्गे विदेहजनपदे मिथिलाधिपतिः, नन्दीमृदङ्गः- एकतः सङ्कीर्णोऽन्यत्रविस्तृतो
यो वलयानि दृष्ट्वा संबद्धः। आव०७१६, ७१९। नमिः मरजविशेषः। राज०४९।
राजा योऽशनादिकमभुक्तैव सिद्धिमुपगतः। सूत्र० ९५ नन्नत्थ-नवरं केवलमिति। औप०८५
नमिः, विदेहजनपदेषु मिथिलानृपतिः, यो नपुंसकः- षण्डकः। दशवै० ११५, २१५१
निजदेवीवलयं दृष्ट्वा प्रतिबुद्धः। नपुंसगवेए- नपुंसकस्य वेदो नपुंसकवेदः, नपुंसकस्य नमुचिः- वाराणस्यां ब्राह्मणविशेषः। उत्त० ३७६) स्त्रियं पुरुषं च प्रत्यभिलाष इत्यर्थः, तद्विपाकवेयं | नमुचिना- सेवायुपायलब्धे दृष्टान्तः। जम्बू० २६७। कर्मापि नपुंस-कवेदः। प्रज्ञा० ४६९।
नमुक्कार- नमस्कारः नमस्कारसहितं प्रत्याख्यानम्। नपुंसगवेय- नपुंसकवेदको वर्द्धितकत्वादिभावेन भवति। आव० ८५२। नमस्कारः। आव० ५२४, ८००। भग०८९३
नय- नयः अनन्तधर्मात्मकस्य वस्तुन एकांशपरिच्छेदः, नपू- नपूंसकत्वम्। उत्त० ३१४१
एकेनैव धर्मेण पुरस्कृतेन वस्त्वङ्गीकारः। जम्बू. ५ नभ-नभाति दीप्यतेति नभः। भग० ७७६)
अनन्तधर्मात्मकस्य वस्तुन एकांशपरिच्छेदः, नयनं नमंसइ- नमस्यति कायेन प्रणमति। जम्बू. १७। सूर्य. ६) | नयः नीयतेऽनेनास्मिन्नस्मादिति नयः। स्था० ४।
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [३]

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