Book Title: Agam Sagar Kosh Part 03
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम-सागर-कोषः (भागः-३)
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पतणुरागसंजुत्त- प्रतनुरागसंयुक्तः। आव०६६।
ओघ० १६८। ज्ञाता०६५, १८५। पत्रं-पक्षसञ्चयम्। उत्त० पतत-प्रततः-स्वप्नसन्तानः| निशी० ८६अ।
२६९। पतनता- भ्रमिमूर्छादिना। आचा० २५५।
पत्तइय- पत्रकितः-सञ्जातत्सिकाऽल्पपत्रः। ज्ञाता० पतयवई-द्वितीयपतेन्द्रः। स्था०८५)
११६ पतरगणियभावणा- प्रतरभावना। जीवा० ३२५१
पत्तउर- गुच्छाविशेषः। प्रज्ञा० ३२॥ पतवति- प्रतपति। जीवा० २४८। दीप्ताङ्गारतां
पत्तकयवर- पत्रकचवरः। जीवा० २८२ प्रतिपद्यते। जम्बू० ४१९।।
पत्तग- पत्रकं-लेखः। बृह. ३३ आ। पतिवया- पति-भर्तारं व्रतयति-तमेवाभिगच्छामीत्येवं पत्तच्छज्ज-अष्टषष्टिकलारुपानम्। ज्ञाता० ३८1 नियमं करोतीति पतिव्रता। ज्ञाता० २०२
पत्तज्झोडण-पत्रज्झोडनंपतिद्वा-प्रतिष्ठानं प्रतिष्ठा-संसारभ्रमणविरतिलक्षणा, तरुप्रान्तपल्लवफलादिपातनम्। प्रश्न० २५४
सम्य-ग्दर्शनादयवाप्तिसाध्या मोक्षप्राप्तिः। सूत्र. २०३। | पत्तट्ठ- प्राप्तार्थः-अधिकृते कर्मणि निष्ठां गतः प्रज्ञः। पतिद्वाण- प्रतिष्ठाननगरम्। उत्त. १०० नयरविसेसो अनुयो० १७७। प्राप्तार्थः-लब्धोपदेशः। औप०६५। निशी० ३४० अ। नगरनाम। बृह. २३६ अ। गोदावर्याः पत्तणाल- पत्रनालम्। आव० ६२४। नदीतटे नगरम्। व्यव० १९३ अ।
पत्तणिज्जासो- पत्रनिर्यासः-धातकीपत्ररसः। जीवा. २६५ पतिद्वावक- प्रतिस्थापकः-राजादिसमक्षं स्वपदनिवेशनः। पत्तन-यत्-शकटै?टकैनौभिर्वा गम्यम्। जीवा०४० यत् ज्ञाता० २४०
पुनर्शकटै_टकनौभिर्वा गम्यं तत् पत्तनं, यथा पतिहिओ- प्रतिबद्धः। बृह. २५२।
भृगुकच्छम्। प्रज्ञा०४८ शकटै?टकैनौभिर्गम्यं पतिठिता- प्रतिष्ठिताः-आश्रिताः। स्था० ३५८१
पत्तनम्। जीवा० २७९। पतिभयकर- प्रतिभयकर-भयजनकम्। सम० १२६| पत्तपणालं-पत्रप्रणालिका। आव० ६२१| पतिभय- प्रतिभयं-वस्त्वस्तुप्रतिभयम्। प्रश्न. १३ पत्तपुड- पत्राणि-तमालपत्रादीति। ज्ञाता० २३२१ पतिरिक्क- प्रतिरिक्तः-एकान्तः। जीवा० २६९। पत्तबेंटिया- त्रीन्द्रियविशेषः। प्रज्ञा० ४२। त्रीन्द्रियजन्तुप्रतिरिक्तः एकान्तः। ओघ. २०३।
विशेषः। जीवा० ३० पतिव- प्रतिवः। प्रश्न०७३।
पत्तभूमिया-सार्धक्रोशद्वयादागताः। बृह. १८६ आ। पतोग- प्रयोगः-वादविषयः। स्था० ४२३।
पत्तय- पात्रकम्। औप. १९९। पत्रकं-तलताल्यादिपतोदयं-पतदुदयं-पतितपताकम्। भग० १८७)
सम्बन्धि। अनुयो० ३४। पतोस- पद्वेषः। व्यव० ३५७ आ।
पत्तरक- प्रतरकम्। प्रश्न. १५९। पत्त-पत्रं-तमालपत्रम्। प्रश्न. १६२ पात्रम्। आव० ११५ पत्तल-पक्ष्मवत्। औप०४९। पत्रलं-पक्ष्मवत्। जीवा. पत्रं-पलाशपत्रकर्मारिपत्रादिकम्। अनुयो० १५४। प्राप्तं- २७३। पत्रलः-पत्रवर्ती। औप०९। लब्धिविशेषाद गृहीतम्। भग. २२४। प्राप्तं
पत्तवास- पत्रवर्षः-पर्णवर्षणम्। भग. १९९| आदानशीलः। ओघ० ९३। पात्रमिव पात्रमतिशयवद् पत्तविच्छुया- चतुरिन्द्रियजन्तुविशेषः। जीवा० ३२॥ ज्ञानादिगणरत्नानां प्राप्तिर्वा गणप्रकर्षमिति। स्था० चतुरिन्द्रियविशेषः। प्रज्ञा० ४२॥ २१। प्राप्तम्। भग० १५९। उत्त० ३२१। सुत्तत्थ- पत्तवुट्टि- पत्रवृष्टिः । भग० १९९| तद्भयस्स गहणधारणाशक्तेत्यर्थः। निशी. ७६ आ। पत्तवेंट- पत्रवृन्तम्। जीवा० २२८१ तमालपत्रादि। जम्बू०६०। पत्र-पद्मिनी पत्रादि। दशवै. पत्तसगडिया- पत्राणां शकटिका-गन्त्री पत्रशकटिका। २२८१ पत्रं-पर्णम्। स्था० २७३। पत्रंतमालपत्रम्। भग० ज्ञाता०७४। ७१३। ज्वालाभिः पिठरं बुध्नेऽग्निः स्पृशति स प्राप्तः। | पत्तहार- त्रीन्द्रियजन्तुविशेषः। जीवा० ३२ अग्ने पञ्चमभेदः। पिण्ड. १५२। प्राप्तः-आसण्णीभूतः। | पत्तहारग- पत्रहारकः-त्रीन्द्रियजीवविशेषः। उत्त०६९५
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [३]

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