Book Title: Agam Sagar Kosh Part 03
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 94
________________ [Type text]] आगम-सागर-कोषः (भागः-३) [Type text] दोसिणाभा- अष्टमोत्क्षेपस्य द्वितीयमध्ययनम्। ज्ञाता० | द्रव्यगर्दा- मिथ्यादृष्टेरनुपयुक्तस्य सम्यग्दृष्टेश्च २५२सूर्यस्य दवितीयाग्रमहिषी। स्था० २०४। द्रव्यगर्हा, अप्र-धानगर्हेत्यर्थः। स्था०४३। ज्योत्सनाभा चंद्र-स्य ज्योतिषेन्द्रस्य | द्रव्यचूडा- व्यतिरिक्ता सचिता कुर्कुटस्य अचित्ता द्वितीयाऽग्रमहिषी। जीवा० ३८४। भग० ५०५। चन्द्रस्य मुकुटस्य चूडामणिः मिश्रा मयूरस्य। आचा० ३२० दवितीयाग्रमहिषी। स्था० २०४| ज्योत्सना भा चन्द्रस्य | दव्यतीर्थता- द्रव्यतो नद्यादीनां समोऽनपायश्च भूभागो द्वितीयाऽग्रमहिषी। जम्बू० ५३२। भौतादिप्रवचनं वा। स्था० ३३। दोसिया- कार्यभेदविशेषः। प्रज्ञा० १६। वस्त्रवणिजः। | द्रव्यनिवृत्तिः- हलकृष्टादिनिवृत्तिः। आव० ५५३| निशी. २४४ अ। वत्थाणिविक्कया दोसिया। निशी. ४५ | द्रव्यप्रत्ययः- द्रव्यं च तत्प्रत्याय्यप्रतीतिहेतुत्वात् । दौषिकाः। व्यव० ३४० आ। प्रत्ययश्च द्रव्यप्रत्ययः-तप्तमाषकादिः। आव० २८० दोसिल्ल-दोषयुक्तः। भक्त। द्रव्यप्रत्युपेक्षणादोसीण- पर्युषिते। ओघ०६७। निशी० ७६ । दोषीनं- वस्त्रपात्रायुपकरणानामनशनपानाद्याहाराणां च मध्याह्नम्। ओघ० १४८। दोषान्नं रात्रिपर्युषितम्। चक्षुनिरीक्षणरूपा। स्था० ३६१। प्रश्न. १६३। पर्युषितम्। आव० २२०, ४६२। द्रव्यप्राण-इन्द्रियादयः। प्रज्ञा०७) पर्युषितान्नम्। आव० २०११ द्रव्यमहद्-अचित्तमहास्कन्धो दण्डादिकरणेन दोसीणवेला- प्रभातवेला उषःकालः। दशवै० ३८५ यश्चतुर्भिः समयैः सकललोकमापूरयति। उत्त० २५५। दोहणं- दोहनम्। आव० २२६। द्रव्यलेश्या- कृष्णादिद्रव्याण्येव। स्था० ३२। जीवस्य दोहणवाडगो- गोवीओ जत्थ दुज्झंति सा| निशी. १५९ शुभाशुभपरिणामरूपा। बृह० २५६ आ। । द्रव्यश्रुतम्-अक्षरश्रुतम्। नन्दी० १८८१ दोहल-दोहदो-मनोरथः। ज्ञाता० २५ द्रव्यसुप्ताः-निद्राप्रमादवन्तो द्रव्यस्प्ताः । आचा०१५२| दोहारच्छेयणेणं-द्वौ हारौ-भागौ यत्र छेदने द्विधा वा द्रव्यस्थानम्-आकाशम्। उत्त०४२२। कारः-करणं यत्र तद्दविहारं वा। भग० ५३५ द्रव्यानुयोग- अर्हद्वचनानुयोग तृतीयो भेदः-पूर्वाणि दौवारिकः- प्रतिहारः। उत्त० ३५४ नन्दी०७३। सम्मत्या-दिकश्च। आचा० १। दयूतव्यसनं- यत्त्तु युतविनोदेऽनवरतं दीव्यते तत्। द्रव्यावधिमरणं- यानि नारकादिभवनिबन्धनतयाऽऽयः बृह. १५७ । कर्मद-लिकान्यनुभूय म्रियते, यदि पुनस्तान्येवानुभूय मरिष्यति तदा तद द्रव्यावधिमरणम। उत्त. २३२॥ १५६। ग्राममाश्रितस्तुन्दपरिभूजः। आचा० ३१४। द्रव्यावीचिमरणंद्रमिला- देशविशेषः। व्यव. २८ अ। यन्नारकतिर्यग्नरामराणामुत्पत्तिसमयात् प्रभृद्रवं-पानकम्। ओघ. १०११ तिनिजनिजायुः द्रवकारिकाः- परिहासकारिकाः। ज्ञाता०४४। कर्मदलिकानामनुसमयमनुभवनाविचटनं तत्। द्रविडदेशजाः- द्रविड्यः। जम्बू०१४१| उत्त. २३१। द्रव्यं- ओदनादिकम्। भग०६६३। द्रव्यास्तिकः-नयविशेषः। सम०४२॥ द्रव्यकायः- द्रव्यमाश्रित्य कायः। आव०७६७। द्रव्येन्द्रियाणि- निर्वत्त्युपकरणरूपाणि। प्रज्ञा० २३। द्रव्यकानम्-अशेषपर्याययुक्तम्। उत्त० ५५७) द्रव्योपक्रमः- द्रव्यस्य नटादेः कालान्तरभाविनाऽपि द्रव्यकेतनं- चालिनी परिपूर्णकः समुद्रो वेति। आचा० पर्यायेण सहेदानीमेवोपायविशेषतः संयोजनं, द्रव्येण १६३ घृतादिना द्रव्ये भूम्यादौ द्रव्यतः घृतादेर्वा उपक्रमः। द्रव्यक्षणः- द्रव्यात्मकोऽवसरो। आचा० १०९। अनुयो०४५ सचेतनाद्रव्यक्षुल्लकः- परमाणुः। दशवै० १००/ चेतनमिश्रद्विपदचतुष्पदापदरूपस्य द्रव्यस्य परिकम मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [94] "आगम-सागर-कोषः" [३]

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