Book Title: Agam Sagar Kosh Part 03
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम-सागर-कोषः (भागः-३)
[Type text]
नियओ-नियतः-परिच्छिन्नः। आव. ५९१|
अण्णहाकरणलक्खणा माया। आव० ६६२। निकृतिःनियग-निजकः गोत्रजः। भग. १६३। निजकः
कैतवार्थप्रयुक्तवचनाकाराच्छादनम्। बृह. ४६। भ्रातृपुत्रादिः। औप० १०३। निजकः-भर्ता। पिण्ड० १२२ नियडी- माया। बृह. १८६अ। आव०६३८१
नियणा-निदानं निर्दणणं। बह. ४ आ। नियगा-णियगा-आत्मीयाः। आचा० १०५ निजाः- नियतंति-निबद्धं। निशी. ३५अ। आत्मीया बान्धवाः सुहृदो वा। आचा० १०८।
नियत-नियतार्थविषयेनैककालमनेकविषयम्। ब्रह. ९ नियच्छंतो-अन्वेषयन्। बृह. २१३अ।
आ। एकरूपत्वात् नियतः। स्था० ३३३। नित्यम्। स्था० नियच्छइ-नियच्छति बध्नाति। उत्त०४१६)
४२६। नियच्छइ-नियच्छतः निश्चयेन गच्छतिः प्राप्न्तः। नियतवादिन-पाखंडीविशेषः। सम.११० सूत्र० ३५
नियतिः- व्यवस्था। व्यव० १७१ अ। नियच्छन्ति-अवधारयन्ति। आचा० १६७।
नियतिवादिनः-नियतिः-पदार्थानामवश्यन्तया नियट्टी-निवृत्तिः द्विसमयस्थितिकस्यापि वेद्यकर्मणो यद्यथाभवने प्रयोजककर्तीति। स्था० २६८। बन्ध-व्यावृत्तिः मुक्तिः । उत्त० ५८९।
नियत्त-निवर्तनम्। ओघ० १७४। निवृत्तः। आव०६९३। नियट्टेमाणे- निवर्द्धयन-प्रकाशहान्या हानि नयन्। सम० नियत्तण-निवर्तनं-क्षेत्रमानविशेषः निजतन्प्रमाणं वा। ४७
भग. १६७ नियड-निगडं-दृढबन्धनम्। आचा०६।
नियत्तणसइए-निवर्तनं भूमिपरिमाणविशेषो नियडि-निकृतिः-आन्तरो विकारः। आव० ५६६)
देशविशेषप्रसिद्धः ततो निवर्तनशतं कर्षणीयत्वेन बकवृत्त्या कुर्कुटादिकरणं, अधिकोपचारकरणेन यस्यास्ति तन्निवर्तनशति-कम्। उपा०४। परच्छलनम्। ज्ञाता० २३८ निकृतिःवश्वनक्रिया। नियत्तणियं-निवर्तनिकं निवतनं-क्षेत्रमानविशेषः प्रश्न. ५८ वञ्चनप्रच्छादनार्थं कर्म। ज्ञाता०८०
तत्परिमाणं निवर्तनिकं निजतनप्रमाणं वा। भग. मायाप्रच्छादनार्थ-मायान्तरकरणम्। ज्ञाता० २३८। १६७ निकृतिः-अत्यन्तादरकरणेन परवञ्चनम्। प्रश्न. ९७) । नियत्ती- निर्वतनं निवृत्तिः, प्रतिक्रमणपञ्चमःपर्यायः। निकृतिः-अत्युपचारकरणेन वञ्चनं, माया कर्मा
आव० ५५२। नियतिः-स्वभावविशेषः। प्रश्न. ३५ च्छादनार्थं वा। मायान्तरम्। प्रश्न. ९२। निकृतिः- नियत्थं- नियसितं परिहितम्। आव०१८४ आकार-वचनाच्छादनम्। व्यव० १९भ।
नियम-निरोधः। ओघ. ११४। निश्चयः। पिण्ड. १६९। नियडिकम्म-निकृतिकर्म-मायाकर्म,
इन्द्रियनोइन्द्रियभेदभिन्नः। आव०६७। ततीयाधर्मदवारस्यैको-नत्रिंशत्तमं नाम। प्रश्न. ४३।। द्रव्याद्यभिग्रहात्मकः। उत्त०४५१। अभिग्रहः। भग. नियडिकवडवंचणाकुसला
६२। उत्तरगुणसमूहात्मकः। अनुयो० २५६) निकृतिकपटवञ्चनाकुशलानि-कृतिः-आन्तरो विकारः नियमणिसिद्धो- नियमनिषिद्धः। आव २६७। कपट-वेषपरावर्तादिर्बाह्यः, आभ्यां या वञ्चना तस्यां नियमाः- उत्तरगुणाः। सम० १०७। कुशला-निपुणा। आव० ५६६।
इन्द्रियनोइन्द्रियदमरूपाः। नन्दी०४६। नियडिनिबंधणं- निकृतिनिबन्धनम्। आव० ३९५ अभिग्रहविशेषाः। भग०७५९। सम. १२७ नियडिल्ल-निकृतिमान् मनसा। उत्त० ६५६।
शौचसंतोषतमः स्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि। ज्ञाता० नियडिल्लयाए-निकृतिः-वंचनार्थं चेष्टा
११० विचित्रा अभिग्रहविशेषाः। राज० ११९। ज्ञाता०७ मायाप्रच्छादनार्थं मायान्तरमित्येके अत्यादरकरणेन । नियमिता-जिताः। बृह. २११ आ। परवञ्चनमित्यन्ये तदवत्ता। भग०४१२१
नियम-नियमयेत् कारयेदवाचा। आचा०४१६) नियडि-निकृतिः। आव. २६४, ३९४१ माया० आव०७९८१ | नियय-निहतं-सर्वदा। पिण्ड. १६७। नियतं-प्रतिदिवसं
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [३]

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