Book Title: Agam Sagar Kosh Part 03
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 241
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-३) [Type text] पितृपिण्ड- पिण्डनिकरः। आचा० ३२८१ | सूर्य. २९२ज्ञाता० ३७ पितृवन- श्मशानम्। दशवै० २६७। पियए-अभिनन्दनजिनचैत्यवृक्षः। सम० १५२ पितृवनकाष्ठ- श्मशानकाष्ठः। आचा० २५३। पियकारिण- प्रियकारिणः-समाधिविधित्सवः। ब्रह. ११० पित्तं-दोषविशेषः। प्रश्न. ८ पित्तं-दोषविशेषः। ज्ञाता० पियकारिणी- त्रिशलायाः तृतीयं नाम। आचा०४२२१ १४७। मनुष्याणामशुचिस्थानम्। प्रज्ञा० ५० पियगंधव्व- गीतप्रियः। ज्ञाता० २१३। पित्तज्जर- पित्तज्वरः। ज्ञाता०१११| पियचंदो- प्रियचन्द्रः-कनकप्रनगरनृपतिः। विपा. ९५। पित्तमुच्छा- पित्तमूर्छा-पित्तप्राबल्यात् मनाग मूर्छा।। पियण- अपकायस्य परिभोगे दृष्टान्तः। स्था० ३३९। आव०७७९। पियदंसण- प्रियदर्शनः धातकीखण्डद्वीपे महर्द्धिको देवः। पित्तित- चतुर्पु वार्घिषु द्वितीयः, पीतोद्भवः। स्था० २६५) जीवा० ३२८। देवविशेषः। स्था० ७९। भगवन् महावीरपैत्तिकः। आव०४०५१ पुत्री। आचा० ४२२ पिन्नाम-पिण्याकः-खलः। सूत्र० २९६। पियदंसणा- प्रियदर्शना, चन्द्रावतंसकराजपत्ती। आव. पिपासा-विषयेच्छा। आव० ५९। ३३६। प्रियदर्शना, अपरनामाऽनवदयाङ्गी। उत्त. १५३। पिपीलिका- पृथिव्याश्रितो जीवभेदः। आचा० ५५। काष्ठ- | पियधम्म- प्रियो धर्मो यस्य तत्र प्रीतिभावेन सुखेन च निश्रिता पिपीलिका। आचा० ५५ समूर्च्छन विशेषः। प्रतिपत्तेः स प्रियधर्मा। स्था० २४२। प्रियधर्मा-धर्मदशवै०१४१। त्रीन्द्रियविशेषः। प्रज्ञा०४२ प्रियः। प्रश्न० ११६| प्रियः इष्टो धर्मोऽस्येति प्रियधर्मा। पिपीलिया- पिपीलिकाः-कीटिकाः। उत्त०६९५) ओघ. २०२। पिप्परी- पिप्पली-वृक्षविशेषः। प्रज्ञा० ३२ पियधम्मा- प्रियधर्मा दृढधर्मा। भग० १२७। इच्छियाभिहाणी। निशी. १९२आ। पियपुच्छय- प्रियपुच्छकः। आव० २२१, २२६। पिप्पल-पिष्पलः-ह्रस्वक्षुरः। विपा० ७१। पिप्पलः खाद्य | पियमित्त- षष्ठ वासुदेवस्य पूर्वभवनाम। सम० १५३। वक्षविशेषः। आव० ८२८ पिलंक्खुः। निशी० १२४ । । प्रियमित्रः-पुरुषपुण्डरीकवासुदेवपूर्वभवः। आव. १६३ स्था० ३३९। पिप्पलकः-किञ्चिवक्रः क्षुरविशेषः। प्रियमित्रः-चक्रवर्ती। आव० १७७ प्रियमित्रः चक्रवर्ति पिण्ड. १७ पिप्पलकः-क्षुरकः। ओघ. १३३। विशेषः। आव. १६७। पितृमित्रम्। आव. २१९। पिप्पलग-पिष्पलकः क्षुरप्रः। बृह. २५३ आ। निशी० १८ | पियसेण- प्रियसेनः-नपुंसको गणिकापुत्रः। विपा० ५४। पिया- पिता “जनेता चोपनेता, यस्तु विद्यां प्रयच्छति। पिप्पलपोतग- पिष्पलपोतकः। आव. ५५५ अन्नदाता भयत्राता, पञ्चैते पितर स्मृताः।" ज्ञाता० पिप्पलि- वृक्षविशेषः। भग०८०३ २४०। सुदंसणगाथापतेः पत्नी। निर० ३७। ज्ञाता० ८८ पिप्पलिया- गुच्छाविशेषः। प्रज्ञा० ३२ पाति-रक्षत्यपत्यमिति पिता। उत्त. ३८ पिप्पली- वृक्षविशेषः। आचा० ३४८ प्रज्ञा० ३६४| पियादए- आत्मवत् सुखप्रियत्वेन प्रियादया-रक्षणं येषां पिप्पलीचुण्ण- पिप्पलीचूर्णम्। प्रज्ञा० ३५४। तान् प्रियदयान, प्रिय आत्मा येषां तान प्रियात्मकान्। पिप्पलीमूलं- पिप्पलीमूलम्। प्रज्ञा० ३६४। आचा० ८८५ उत्त० २६५ पियंकर- प्रियङ्करः-प्रियं-अनुकूलं करोतीति। उत्त० ३४७ | पियापुत्ताणि- पितापुत्र्यौ। उत्त० १२९। पियंगाला- चतुरिन्द्रियविशेषः। प्रज्ञा० ४२। पियापया- आयतः-आत्माऽनोदयनन्तत्वात् स प्रियो येषां पियंग-समतिनाथस्य चैत्यवक्षः। सम०१५२प्रियङगः- ते तथा। आचा० १२२ धनदेवसार्थवाहभार्या। विपा. ८८1 प्रियङ्गः- | पियाल- वृक्षविशेषः। भग० ८०३। प्रियालं-प्रियालफलम्। संवेगोदाहरणे ऽमात्यधर्मघोषभार्या। आव०७०९। दशवै. १८६। प्रियालः-वृक्षविशेषः। प्रज्ञा० ३१| पिय- प्रियं-अनकूलम्। उत्त० ३४७। प्रियः-प्रियार्थः। जम्ब० | पिरली-तृणरूपवादयविशेषः। जीवा. २६६। जम्बू. १०१। १४३। प्रियः-प्रेमकर्ताः। णाता० १६५। प्रियं-प्रेम-कारी। | पिरिपिरिता- तस्य मुहत्थाणे खरमुहाकारं कट्ठमयं मुहं आ। मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [241] "आगम-सागर-कोषः" [३]

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