Book Title: Agam Sagar Kosh Part 03
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
View full book text
________________
[Type text]
आगम-सागर-कोषः (भागः-३)
[Type text]
पउए- प्रयतम चतरशीत्या लक्षैः। अनयो० १०० भग० पद्मकाभिधानं गन्धद्रव्यं वा। जीवा० २७७। पञ२९० कालमानविशेषः। भग० २७५।
पुष्करम्। जीवा० ३३३। चतुर-शीतिः पउट्ट- परिवतः परिवर्तवाद इत्यर्थः। भग० ६६८१ पद्माङ्गशतसहस्राणि पद्मम्। जीवा० ३४५। पद्मम्। प्रज्ञा० पउट्टपरिहार- परिवृत्यपरिहारः। भग० ६६७। शरीरान्तरप्र- ३७। पग-बिन्दुजालरूपम्। जम्बू. ५२८। सह-स्रपत्रः
वेशः। भग०६७३। परावर्त्य परिहारः। आव. २१४१ देवपरिकल्पितः पद्मः। आव० २३२ पञ-अरवि-न्दम्। पउट्ठ- प्रकोष्ठः-कूपर्पराग्रेतनभागः। भग०५४०
दशवै०१८५सौधर्मकल्पे पद्मावतंसकविमाने सिंहापउहा- प्रविष्ठा। आव० ८००
सनम्। ज्ञाता०२५३। पञ-कमलं गन्धद्रव्यविशेषो वा। पउण- प्रगुणभूतः। आव० ४००। प्रगुणः। आव० २२७) सम०६१। कल्पावतंसिकस्य प्रथममध्ययनम्। निर० पउणइ- प्रगुणीभवति। आव० ६७९।
१९| पद्मः। ज्ञाता०९६ पद्मकम्। आचा० ३६३। पञपउतंग- प्रयुताङ्गं चतुरशीतिरयुतशतसहस्राणि
सूर्यविकाशिपङ्कजम्। राज०८ पक्षार्थःप्रयुताङ्गम्। जीवा० ३४५। स्था० ८६।
भगवत्यामेकादश-शते षष्ठोद्देशकः। ५११| पञपउत- चतुरशीतिः प्रयुताङ्गशतसहस्राणि प्रयुतम्। जीवा. पद्मकाभिधानं गन्धद्रव्यम्। जम्बू० ११७ आणतकल्पे ३४५। स्था० ८६। प्रयुक्तः योत्रितः। जीवा० १९३। प्रयुक्तं- विमानम्। सम० ३५) सह-स्रारकल्पे विमानम्। सम. प्रयोगः। भग० १८२। प्रज्ञा० ४३६।
३३। पञ-कामलं, एतदभिधा-नगन्धद्रव्यम्। औप०१६ पउत्तदव्वसम्म- यत्प्रयुक्तं द्रव्यं लाभहेतुत्वादात्मनः पञ-सूर्यविकासि। जीवा. १७७। पद्मः-हृदविशेषः। ज्ञाता० समाधा-नाय प्रभवति तत्प्रयुक्तद्रव्यसम्यक्। आचा० १२८१ १७६|
पउमगंधा- पद्मगन्धा। जम्बू. ३१३। पउत्ति- प्रवृत्तिः-व्यक्ततरवार्ता। ज्ञाता०८४।
पउमग- पद्मकं कुङ्कुमकेसरम्। दशवै० २०६। पउत्ती- प्रवृत्तिः । आव०४१६|
पउमगुम्म- कल्पावतंसिकस्य सप्तममध्ययनम्। निर० पउत्थ-प्रोषितम्। आव० ३४२ प्रोषितम्। उत्त. १४७ १९| पद्मगुल्मः-नलिनगुल्मविमानः। उत्त० ३७६| पउत्थवइया- प्रोषितपतिका। आव०६४० प्रोषितभर्तका। सहस्रारे विमानविशेषः। सम० ३५। पद्मग्ल्मओघ० १५०। प्रोषितभर्तुका। आव० ३९८१
विमानविशेषः। उत्त० ३९५१ पउप्पए- प्रपौत्रकः-प्रशिष्यः। भग०५४९। शिष्यसन्तानः। पउमजालं- पद्मजालं सर्वरत्नमयपद्मात्मकं। जीवा. १८१। भग०६९१|
पउमणाभे-धातकीखण्डापरककायां नरपतिः। ज्ञाता० पउमंग- पद्माङ्ग-चतुरशीतिरुत्पलाङ्गशतहस्राणि। जीवा. २१३ २४५। कालमानविशेषः। स्था० ८६। कालमान-विशेषः। पउमणिकंदो- पद्मिनीकन्दः-उत्पलिनीकन्दः। प्रज्ञा० ३७। भग० ८८८। कालमानविशेषः। सूर्य ९१। चतुरशीत्याल- | | पउमद्दह- पद्मद्रहो नाम द्रहः पद्मद्रहो नाम ह्रदो वा। जम्बू. क्षैरुत्पलैः पद्माङ्गम्। अनुयो० १००।
२८४॥ पउम- पद्मः-हिमवति ह्रदः। स्था०७३। पञ्चमजिनभिक्षा- | | पउमद्दहप्पभाई-पद्मद्रहप्रभाणि-पद्मद्रहाकाराणि आयतचदाता। सम.१५१। आगामिन्यां अवसर्पिण्यां
तुरस्राकाराणि। जम्बू० २८८ अष्टमचक्री। सम० १५४| कालमानविशेषः। भग० २१०५ | पउमपम्हं- पद्मपक्ष्म-पद्मपत्रम्। जीवा० ३८६। भग० २७५ आगामिन्यां अवसर्पिण्यां अष्टमबलदेवः। पउमपम्हा- पद्मगर्भाः। प्रश्न. ७०। सम० १५४। कालमानविशेषः। भग० ८८८ जलरुहो पउमप्पभा- पद्मप्रभा दक्षिणपुष्करिणीनाम। जम्बू. ३३५) वनस्पतिविशेषः। प्रज्ञा० ३३। कालमानविशेषः। सूर्य पउमप्पय- परम्परा। बृह० ११३। ९१। पद्मः-सम-तिजिनप्रथमभिक्षादाता। आव० १४७) पउमप्पह- इह निष्पकतामङ्गीकृत्य पद्मस्येव प्रभा पद्मः-अष्टमबलदेवः। आव. १५९। पञ-चतरशीति लक्षैः यस्याऽसौ पद्मप्रभः, षष्ठजिनः। आव०५०३। पद्माङ्गः। अनुयो० १०० ज्ञाता० २५३। पञ-कमलं- पउमभद्द- कल्पावतंसकस्य पञ्चममध्ययनम्। निर०
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
[153]
"आगम-सागर-कोषः" [३]

Page Navigation
1 ... 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272