Book Title: Agam Sagar Kosh Part 03
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 61
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-३) [Type text] दक्खिणा-दक्षिणा। आव०६३० दक्षिणा-दक्षिण-मथुरा। | दगपहो-जेण जणो दगस्स सो दगपहो। निशी. २६५ आव०६८ दगपिप्पली-हरितविशेषः। प्रज्ञा० ३३। दक्खिणावहो-दक्षिणापथः। आव. १७४। बृह. २२७ ।। दगभवण-उदकभवनं-पानीयगृहम्। दशवै. १६६। दक्षिणपथः-दक्षिणादिग्विभागः। आव. ९९। दगभवनं-उदकभवनं-उदकगृहम्। आचा० ३४० दक्खिण्णे-दक्षिणा। उत्त. २८६) दगमंडवगा-दकमण्डपकाः-स्फटिकमण्डपकाः। जम्बू० दक्खु-पश्यतीति पश्यः-सर्वज्ञः। दक्षो वा निप्णः। सूत्र० | ४४। जीवा० २००१ ७३। द्रष्ट्रा-अतीतानागतव्यवहितसूक्ष्मपदार्थदर्शी। सूत्र | दगमंडवा-स्फाटिका मण्डपाः। राज०७९| ७४। दगमंडवो-उदकमण्डपः-उदकक्षरणयुक्तः। प्रश्न. १६३। दक्षिण-दक्षिणपार्श्वनियुक्तत्वादनुकूलगुणत्वाद्वेति। दगमग्गो-दगवाहो। निशी. २६५अ। स्था० २१६। दक्षिणत्वं-सरलत्वम्, दगमट्टि-दममृत्तिका चिक्खलम्। आव०६७३। पञ्चत्रिंशद्वचनातिशये षष्ठः। सम०६३। दगमट्टिआ- दकसंयुक्तमृत्तिका दक्षिणपूर्व-आग्नेयकोणः। सूर्य २२ विवेचकद्रव्यप्रयोगपूर्विका तद्विवेचनकलाप्युपचाराद् दगंगुलिगा-वक्को। निशी० ४५आ। दृकमृत्तिका। जम्बू० १३७। उद-कमृत्तिका दग-अष्टाशीतौ महाग्रहे त्रयत्रिंशत्तमः। जम्बू.५३५ अचिराप्कायार्दीकृता मृत्तिका। आचा० २८५। स्था० ७९। दकं-अप्कायः। आव० ५७३। उदकम्। प्रज्ञा० उदकप्रधाना मृत्तिका। आचा० ३२२ चिक्खल्ला। ३६१। उदकं-जङ्घार्द्धप्रमाणम्। ओघ० ३२पाणि-यघरं निशी० ८३। प्रवादि। निशी. १० आ। उदकं-जङ्घार्द्धप्रमा-णम्। ओघ० दगमास- वासा। निशी. १०९। ३ दगरए-उदकरजः-उदकगणाः। प्रज्ञा० ३६१| जीवा० २१० दगकलस-दककलशम्। जम्बू० ३८९) पानीयकणाः। जीवा. १६४१ दकरजः-उदकबिन्दुः। ब्रह. दगकुम्भयं-दककुम्भकम्। जम्बू० ३८९। १९२ आ। दगगब्भा-दकस्य-उदकस्य गर्भा इव गर्भा दकगर्भाः- दगरक्खसो-उदकराक्षसःकाला-न्तरे जलवर्षणस्य हेतवस्तत्संसूचका इति जलमानुषाकृतिर्जलचरविशेषः। सूत्र० १६०| तत्त्वमिति। स्था० २८७ दगरय-दकरजः-लक्ष्णोदककणिका। आव० ४४३। दगघट्ठो-जत्थ अद्धजंघा जाव उदगं| निशी. ३४११ दगलेव-उदकलेपो-नाभिप्रमाणजलावगाहनम्। सम० ३९। दगच्छड्डणमत्तए-उदकप्रतिष्ठापनमात्रकं दगवण्णो-दकवर्णः अष्टाशीतौ महाग्रहे चस्त्रिंशत्तमः। उपकरणधावनोद-कप्रक्षेपस्थानम। आचा० ३४० जम्बू० ५३५ दगतीरं-दगब्भासं। निशी. २६५। सिंचनवीचिस्प- दगवार-उदककुम्भः -पानीयघटः। दशवै०१७२ ष्टानि न नयनदृष्टपूराणि मनुष्यादिस्थानं त्ववश्यं दगवारओ-पाणयगड्डयओ। दशवै० ७९| सिंचनवीचि-स्पृष्टलक्षणानि दगतीरम्। मनुष्यास्त्रियो दगवारग- दगवारकः-जलघटः। जम्बू. १०१। वा जलार्थिन आगच्छन्तः साधुं यत्र स्थितं दृष्ट्वा दगवाहो-दगमग्गो। निशी० २६५अ। तिष्ठन्ति निवर्तते वा तङ्कतीरम्। बृह. ३० अ। दगसंसद्हडा-दगसंसृष्ठाहृता-उदकसम्बद्धानीता दगतुंडो-दकत्ण्डः पक्षिविशेषः। प्रश्न० ८। हस्तमा-त्रोदकसंसृष्टा वा भावना। आव. १७६) दगतूर-उदके मुरवादितूर्याणां शब्दकरणम्। बृह० ३२ । | | दगसीम-वेलंधरनागराजस्य चतुर्थ आवासपर्वतः। स्था० दगथालगं-दकस्थालकं-कांस्यादिमयं जलपात्रम्। जम्बू. २२६। दकसीमः-मनःशीलाकभुजगेन्द्रस्यावासपर्वतः। ३८९| जीवा० ३११| दगपंचवण्णे- अष्टाशीतौ महाग्रहे चतुस्त्रिंशत्तमः। स्था० । दगसुगरिया-परिव्वायगा। निशी. १७२ अ। दगसोकरो-परिव्राजकः। आव० ४००। ७९| मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [61] "आगम-सागर-कोषः" [३]

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